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कोई प्रेम के झरने से भरा होता है तो कोई सूखा रहता है, हर किसी का अलग,अलग यात्रा, रुझान और दृष्टि है
एक-एक व्यक्ति की अलग-अलग यात्रा है,अलग-अलग रुझान है, अलग-अलग दृष्टि है।किसी को संगीत प्यारा लगता है,और किसी को केवल शोरगुल मालूम होता है।किसी के पास सौंदर्य को अनुभव करने की क्षमता होती है,और किसी के पास सिवाय पत्थर के,और हृदय में कुछ भी नहीं होता।ऐसे ही कोई प्रेम के झरने से भरा होता है और कोई सूखा।
दो व्यक्ति समान नहीं है।हो भी नहीं सकते।लेकिन हमारी अनजाने यह चेष्टा होती है कि हम सबको एक जैसा अनुभव हो,एक जैसी प्रतीति हो।
यह असंभव है।और जितनी ऊंचाई होगी अनुभूति की,उतना ही और
असंभव हो जाएगा।नीचे तल पर शायद तालमेल बैठ भी जाए,बाजार के तल पर शायद सहमति हो भी जाए,लेकिन आकाश की ऊंचाइयों में हमारी
निजता और प्रत्येक व्यक्ति की अनूठी क्षमता भरपूर प्रकट होती है।
जो तुम्हें मुझमें दिखाई पड़ता है,वह जरूरी नहीं है कि दूसरे को भी दिखाई पड़े।दूसरे को दिखाई न पड़े,इससे न तो परेशान होना,न ही दूसरे पर नाराज होना।क्योंकि यही हमारी सामान्य प्रक्रिया है।अगर दूसरे को भी दिखाई नहीं पड़ता वही,तो हमें शक होने लगता है कि कहीं हम गलती में तो नहीं है?और अगर भीड़ दूसरों की ज्यादा हो,तो संदेह और गहरा हो जाता है।
क्योंकि हम अकेले पड़ गए हैं।हम अकेले कैसे सही हो सकते हैं?जहां इतने
लोगों की भीड़ है,वहां निश्चित ही हम गलत होंगे, भीड़ ही सही होगी।
मैं तुमसे कहना चाहता हूं,भीड़ न कभी सही हुई है और न कभी सही हो सकती है।सत्य का अनुभव वैयक्तिक है।उसका भीड़ से कोई भी नाता नहीं है।कितने लोग थे,जिनको वही दिखाई पड़ता था,जो गौतम बुद्ध को दिखाई पड़ा?सत्य की यात्रा में आदमी अकेला,और अकेला होता चला जाता है।
और एक घड़ी आती है कि सारा संसार एक तरफ,और तुम बिलकुल अकेले।
इसलिए भीड़ से मत घबड़ाना।
यह शुभ सूचना है कि तुम अकेले होने लगे हो।यह सौभाग्य की घड़ी है,
कि तुम्हारी निजता प्रकट होने लगी है।तुम भीड़,और भीड़ के संस्कारों से
मुक्त होने लगे हो।तुम्हारी आंखों पर बंधी हुई परंपरा की पट्टियां उतरने लगी है।और तुम्हारे प्राणों में तुम्हारे अपने स्वर गूंजने लगे हैं।