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मां संतान को ममत्व के भाव मे सराबोर रखती है, सच्चे पथ पर चलने को प्रेरित करती है, कुमार्ग पर चलने पर डाटती है, प्रेमरस पीलाकर बडा़ करती है

माँ का महत्व निबंध
माँ के बिना जीवन संभव नही है| माँ जननी है, असहनीय शारीरिक कष्ट के उपरान्त वह शिशु को जन्म देती है.
व्यक्तिगत स्वार्थो को त्यागकर, अपने कष्टों को भूलकर वह शिशु का पालन-पोषण करती है.
अपनी संतान के सुख के लिए माँ अनेक कष्टों और प्रताड़नाओ को भी सहर्ष स्वीकार कर लेती हैं.
माँ के स्नेह एवं त्याग का पृथ्वी पर दूसरा उदाहरण मिलना सम्भव नहीं है| हमारे शास्त्रों में माँ को देवताओं के समान पूजनीय बताया गया है.
इस संसार में माँ की तुलना किसी अन्य से नहीं की जा सकती| परिवार में माँ का महत्व सबसे बड़ा है.
घर-परिवार को सम्भालने के साथ माँ अपनी सन्तान का पालन-पोषण भी करती है और उसका प्रत्येग दुःख-दर्द दूर करने के लिए दिन-रात सजग रहती है.
परिवार के अन्य सदस्य अपने-अपने निजी कार्यों में व्यक्त रहते हैं परन्तु माँ सन्तान के लिए समर्पित रहती है.
माँ का सर्वाधिक समय सन्तान की देखभाल में व्यतीत होता है| सन्तान की देखभाल के लिए माँ को रात में बार-बार जागना पड़ता है| परन्तु अधूरी नींद के उपरान्त भी माँ सदैव संतान के प्रति चिंतित रहती है.
सन्तान को संस्कार प्रदान करने में माँ का विशेष योगदान होता है| माँ ही संतान को चलना-बोलना सिखाती है.
आरम्भ में माँ ही संतान के अधिक सम्पर्क में रहती है, माँ के मार्ग-दर्शन में ही संतान का विकास होता है.
महान संत, महा पुरुषों की जीवनी सुनाकर माँ सन्तान में महान व्यक्ति बनने के संस्कार कूट-कूटकर भरती है| वह सन्तान को सामाजिक मर्यादाओं का ज्ञान कराती है और उच्च विचारों का महत्व बताती है.
सन्तान को चरित्रवान, गुणवान बनाने में सर्वाधिक योगदान माँ का होता है| एक और वह सन्तान को लाड़-प्यार से सुरक्षा एवं शक्ति प्रदान करती है, दूसरी और डांट-डपटकर उसे पतन के मार्ग पर जाने से बचाती है.
किसी भी व्यक्ति का चरित्र-निर्माण उसकी माँ की बुद्धिमत्ता पट निर्भर करता है| एक माँ ही किसी भी व्यक्ति की प्राथमिक शिक्षिका होती है.
प्रत्येक माँ को अपनी सन्तान सर्वाधिक प्रिय होती है| अपनी सन्तान के लिए माँ सारे संसार से लड़ सकती है, परन्तु संतान के प्रति माँ का अन्धा मोह प्राय: सन्तान के लिए अहितकर सिद्ध होता है.
सन्तान के पालन-पोषण में माँ को लाड़-प्यार के साथ बुद्धिमत्ता की भी आवश्यकता होती है.
अत्यधिक लाड़-प्यार में माँ की सन्तान के प्रति लापरवाही सन्तान को पथभ्रष्ट कर सकती है.
माँ का अत्यधिक मोह सन्तान को कामचोर और जिधि बना सकता है| वास्तव में योग्यता कठिन परिश्रम के उपरान्त ही प्राप्त होती है.
एक बुद्धिमान माँ अपनी सन्तान से प्रेम अवश्य करती है, परन्तु उसे योग्य बनाने के लिए उसके प्रति कठोर बनने में कोताही नहीं करती.
लाड़-प्यार के नाम पर सन्तान को अधिक ढील देने वाली माँ को बाद में पशचाताप ही करना पड़ता है.
आधुनिक समाज में माँ को दोहरा जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है.
नारी–स्वतंत्रता के नाम पर अधिकांश महिलाएँ विभिन्न श्रेत्रों में नोकरी, व्यवसाय कर रही हैं| उन्हें घर-परिवार की देखभाल के लिए अधिक समय नहीं मिलता परन्तु घर-परिवार की देखभाल नारी को ही करनी पड़ती है.
सुबह परिवार में सबसे पहले जागकर वह घर के काम-काज करती है| दिन में उसे नोकरी, व्यवसाय में खटना पड़ता है और शाम को घर आने पर पुन: परिवार का दायित्व उसके कंधों पर आ जाता है.
इस दोहरे जीवन में स्पष्टतया नारी अथवा माँ को कठिनाई अवश्य होती है, परन्तु वह प्रत्येक परिस्थिती से मुकाबला करते हुए अपनी शक्ति को प्रमाणित करती है.
वास्तव में माँ की आंतरिक शक्ति अतुलनीय है| यद्यपि हमारे पुरष-प्रधान समाज में पुरुषों को अधिक अधिकार प्राप्त हैं, परन्तु माँ के बिना परिवार की कल्पना नही की जा सकती.
दिन में घर से बाहर काम-काज में खटने के बाद भी घर-परिवार का दायित्व संभालने की सामर्थ्य माँ में ही सम्भव है.
एक पुरुष काम-धंधे के लिए कठोर परिश्रम कर सकता है, परन्तु घर-परिवार और विशेषतया बच्चों को सम्भालने की योग्यता पुरुष में नही होती.
हमारे शास्त्रों में सत्य ही कहा गया है कि माँ देवताओं के समान पूजनीय होती है. वास्तव में माँ परिवार में सर्वाधिक सम्मान की अधिकारी है. माँ का महत्व सबसे बड़ा है.
ये कहानी shareyouressays वेबसाइट से ली गयी है.

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