अयोध्या।। न देहबन्धनं कदापि गेहजापि संस्मृति:
न लौकिकी कथा कदापि कर्णगोचरा क्वचित्
सदैव जन्म पावना हरेजपस्य सद्ध्वनिः
दहन्त्यघौघमद्भुतं कलेगतिंच शाश्वतीम् (७)
“श्री महाराज के दर्शनों में मानव को न तो अपने देह-गेह की सुधि रहती है और न संसार की दूषित कथा ही सुनने को मिलती है. एक सुन्दर जन्म को सफल बनाने वाली हरिनाम की ध्वनि ही सुनाई पड़ती है जो पाप पुंज को जलाकर कलियुग की शक्ति को भी जला डालती है.” (७)
संतों की वाणी जीवों के कल्याण के लिये ही होती है. उसमें जीवन को सफल बनाने का सन्देश होता है पर हम अपनी अयोग्यता के कारण उसे जान नहीं पाते. अब इस श्लोक में पूज्य महाराज जी ने बहुत बड़ा सन्देश दे दिया है.. आईये उसे समझें… हम सभी कलयुगी जीव कुछ न कुछ दुःख भोग रहे हैं- कभी किसी प्रकार का तो कभी किसी प्रकार का.. जो सत्संगी लोग हैं वो जानते हैं कि इसका कारण हमारे पूर्व में किए हुए पाप हैं.. इन्हीं पापों से मुक्ति पाने के लिये हम अनेक साधनाएं भी करते हैं.. पर फिर भी दुःख मिटते नहीं.. मुझे भी कई बार प्रश्न होता है कि इतनी पूजा-व्रत आदि करने पर भी दुःख-कष्ट क्यों रहते हैं.. मैं एक बात सीधे-सीधे बता दूँ कि आप इस युग में नाम के अलावा कोई साधन नहीं कर सकते.. पूजा और व्रत के बहुत नियम होते हैं जिन्हें आप नहीं जानते.. जान भी लो तो भी इस युग में उन्हें पूरा नहीं कर सकते..
जब ये साधन हुए ही नहीं तो पाप मिटेंगे कैसे.. उस पर भी हम साधन का भी अभिमान करते हैं.. कलियुग में केवल और केवल भगवन्नाम ही साधन है.. गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि भगवान का नाम कैसे भी जपो लाभ ही होगा.. पर समय लग सकता है.. अगर चाहो आज और अभी लाभ हो.. तो इसका ज़वाब भी गोस्वामीजी देते हैं इसके लिये आप दो काम करिये- राम का होकर और कुसमाज का त्याग करके राम नाम जपिये.. कुसमाज का मतलब ही यह है जो आपको राम का होने से रोके.. मुख्य रूप से संसार की कथा ( मतलब जो संसारी कहते हैं कि ऐसा हो नहीं सकता.. आप ठीक नहीं हो सकते, ये स्थिति बदल नहीं सकती.. जो आपको प्रभु के सर्वसमर्थ होने पर विश्वास नहीं होने देता ) और आपका अभिमान चाहे धन का, दोस्तों का या साधना का – ये आपको भगवान का होने नहीं देते.. पर जब आप देवराहा बाबा के पास होते हैं तो आपको अपनी सुधि नहीं रहती ( अपना अभिमान नहीं रहता ) और सांसारिक बातें नहीं होती.. तब आप पूरी तरह से भगवान के हो जाते हो और फिर जो नाम जप होता है उससे सभी पापों का नाश हो जाता है.. ये सत्संग की महिमा है.. मैंने इसको खूब अनुभव किया है.. अब एक कथा सुनिए..
बाबा के परम भक्ति श्री कृष्णाधार शर्मा जी की चाची थीं. वो बहुत बीमार पड़ी. कुछ पचता नहीं था- न पानी, न दवा. डॉक्टर निराश हो गए. अंतिम क्षण की प्रतीक्षा होने लगी. चाची ने कहा घर ले चलो, अपनों के बीच राम नाम जपते हुए मरूं.. घर आ गयीं, होठों-होठों में राम नाम जपती रहतीं. इलाज सब बंद हो गया था. अचानक एक हफ्ते बाद उन्होंने खिचड़ी मांगी.. खिचड़ी पच गयी.. अन्न पचने लगा.. धीरे-धीरे वो बिलकुल स्वस्थ हो गयीं.. बाबा के दर्शन को गयीं.. उनसे माँगा कि कष्ट में नहीं मरुँ, नाम जपते हुए मरुँ.. चाची उसके बाद १२ साल जीवित रही और राम नाम कीर्तन करते हुए ही उन्होंने प्राण त्याग किया…
‘देवराहा बाबा स्तुति शतकम्’
रचयिता – अनंतश्री विभूषित श्रीसुग्रीव किलाधीश अयोध्या पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य जी महाराज
व्याख्याकर्ता – श्रीराम प्रपत्ति पीठाधीश्वर स्वामी (डॉ.) सौमित्रिप्रपन्नाचार्य जी महाराज
दास जगदीश सतगुरु धाम बर्राह रामनगर जौनपुर 9451154345