पालघर।मुबंई। परम पूज्य संत स्वामी अडगडानंद जी महाराज ने कहां कि यह संसार दुखों का घर है। जो आज है कल नहीं रहेगा।
यह संसार दुःखों की खानी ।
तब बचिहो जब रामहिं जानी ।।
आदिशास्त्र गीता में भी संसार को *’दुःखलायंशाश्वतं’* (८/१५) कहा गया है। कबीर *गीता* ही तो पढ़ रहे हैं कि संसार दुःखों का घर है। जो आज है कल नहीं रहेगा । *’फरा सो झरा, बरा सो बुताना’* । वह दुःखों की खानि है। जैसे कोयले की खदान में चाहे जितनी गहरी खुदाई करो, कोयला ही मिलेगा । कोयले की क्वालिटी अच्छी ख़राब हो सकती है किन्तु मिलेगा कोयला ही । *’तब बचिहो जब रामहिं जानी’* – इस दुःख से तभी बचोगे जब राम को जान लोगे ।
हमरे देखत सकल जग लूटा ।
दास कबीर राम कहि छूटा। ।।
देखते ही देखते प्रजा से लेकर चक्रवर्ती सम्राट तक लूट लिए गए किन्तु दास कबीर राम का आश्रय लेकर इस माया के चंगुल से छूट गया । एक अन्य स्थल पर कबीर ने कहा कि संसार में लोग परस्पर कुशल ही पूछते हैं –
*कुशल कहत कहत जग बिनसे, कुशल काल की फांसी ।*
*कह कबीर एक राम भजे बिन , बाँधे जमपुर जासी ।।*
बुजुर्गों से उनकी कुशलता न पूंछे तो वह दुःखी हो जाते हैं। वह सोचते हैं हमारी इतनी उम्र हो गई और हमें पूछा तक नहीं ! यदि किसी ने पूछ लिया तो कहते हैं – हाँ ! बहु बड़ी होनहार है, साक्षात् लक्ष्मी है, बड़ी सेवा करती है। पनत पैदा हुआ है, बेटे का प्रमोशन हो गया, बृद्ध पेंशन भी मिल रहा है। यह कुशल…..वह कुशल…. कहते कहते लोग मरते जा रहे है। यह कुशल नहीं काल का फेंका हुआ फंदा है। वह क्षण आ गया जो इस शरीर की आयु का अंतिम क्षण है । पौत्र का मुंह तो हमने देखा लेकिन *जिसके लिए यह दुर्लभ तन मिला था, उसके लिए तो हमने सोचा ही नहीं ।* दो कदम चले नहीं इतने में प्राण पखेरू उड़ गए।
एक परमात्मा के चिंतन का उपदेश कबीर ने दिया । उसी एक परमात्मा का चिंतन तुलसी ने दिया । एक परमात्मा के चिंतन पर पूरी गीता खड़ी है । इतना ही नहीं, विश्व में जिसने भी धर्म की परिभाषा दी है, गीता का ही थोड़ा थोड़ा अनुवाद लिया है कि एक ईश्वर ही सत्य है, उसके अतिरिक्त सबकुछ नश्वर है । भले ही वह महापुरुष पढ़ा लिखा हो या फुटपाथ पर मिला हो, वह संसार के चाहे जिस परम्परा में खड़ा हो, अंत में सिमटकर एक ही भाषा बोलेगा, एक ही निष्कर्ष पर पहुंचेगा, दूसरा कुछ कह ही नहीं सकता । यदि दूसरा कुछ कहता है तो उसने अभी पाया नहीं ।
*उड़ी माखी तरुवर को लागि, बोले एकै वाणी ।हर हर महादेव, जेडी सिंह