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माया जैसा चाहती हैं, सबकों वैसा ही नाच नचाती है, आयु के दिन पूरा कर लेने मात्र से जीव का कल्याण संभव नहीं है

पालघर।मुबंई। परम पूज्य संत स्वामी अडगडानंद जी महाराज ने कहां कि
राम राज बैठें त्रैलोका ।
हरषित भये गये सब सोका ॥
(रामचरितमानस,७/१९/७)
राम का राज्याभिषेक होते ही तीनों लोकों का शोक समाप्त हो गया, खुशी की लहर दौड़ गयी । यह तो प्रसिद्घ ऐतिहासिक घटना है । सारे संसार में रामकथा प्रचलित है । सभी इसे जानते थे, किन्तु महर्षि कहते हैं –

यह गुप्त है, इसे कोई नहीं जानता । ऐसा कहने में उनका आशय क्या है ❓

वस्तुतः शास्त्र दो दृष्टियों से लिखा जाता है । पहला उद्देश्य रहता है इतिहास को जीवन्त रखना जिससे लोग पूर्वजों के पदचिन्हों पर चल सकें , मर्यादित जीवन जी सकें; किन्तु कुशलतापूर्वक जी-खा लेने से, आयु के दिन पूरे कर लेने मात्र से जीव का कल्याण संभव नहीं है । इसीलिए शास्त्र लिखने का दूसरा लक्ष्य रहता है कि उस महान घटना के माध्यम से अध्यात्म की शिक्षा प्रदान करना ।

संसार का हर जीव माया के आधिपत्य में हैै । माया जैसा चाहती है, सबको वैसा ही नाच नचाती है । इस जीव को माया की अधिकृत भूमि से निकालकर आत्मा की अधिकृत भूमि में प्रवेश दिला देना, उसे आत्मा के संरक्षण में लाना अध्यात्म है 

उसी इष्ट (आत्मा) के निर्देशन में चलते हुए परमतत्व परमात्मा का दर्शन, स्पर्श, प्रवेश और उसी परमात्मा में स्थिति दिलाना अध्यात्म की पराकाष्ठा है, चरमोत्कृष्ट सीमा है । यह आत्मिक जागृति अत्यन्त दुर्लभ है, गोपनीय है । यह जागृति वाणी से कहने में या लेखनी से लिखने में नहीं आती, इसीलिए लोमशजी ने कहा –

राम चरित सर गुप्त सुहावा ।
संभु प्रसाद तात मैं पावा ॥
(रामचरितमानस,७/११२/११)

यह रामचरित अत्यन्त गुप्त है, परम मनोहर है, मन को बाँध रखने में सक्षम है । इसे हमने शंकरजी की कृपा से प्राप्त किया था ।

तोहि निज भगत राम कर जानी ।
ताते मैं सब कहेउँ बखानी ॥
(रामचरितमानस,७/११२/१२)

हमने तुम्हें राम का अन्तरंग भक्त समझकर इसका विस्तार से वर्णन किया है, इसलिए तुम भी सदैव ध्यान रखना कि –
�

राम भगति जिन्ह कें उर नाहीं ।
कबहुँ न तात कहिअ तिन्ह पाहीं ॥
(रामचरितमानस,७/११२/१३)

जिसके हृदय में राम की भक्ति न हो, उसे यह कभी मत कहना, भूलकर भी नहीं कहना । इतना ही नहीं, मानसकार तो यहाँ तक कहते हैं –
�
कहिअ न लोभिहि क्रोधिहि कामिहि ।

आप ही बतायें, यहाँ जितने लोग बैठे हैं, सबमें क्या काम नहीं है ❓
आपमें क्रोध है या नहीं ❓
लोभ है, मोह है, राग है, द्वेष है…….  जब यह विकार प्राणिमात्र में हैं तो कहा किससे जाय ❓
�
यह सत्संग नहीं जो सुनने आप यहाँ बैठे हैं, महर्षि लोमश उस रामचरित को गुप्त कहते हैं जो केवल ऋषि-परम्परा में है, अधिकारी साधक के लिए है

नि:संदेह  सनातन धर्म का आदि-धर्मशास्त्र ‘गीता’ है। कतिपय कारणों से समाज से दूर होने के कारण पनपी  कुरीतियों/भ्रान्तियों को ही हम धर्म मानकर आचरण करने लगे फलस्वरूप समाज व राष्ट्र उत्तरोत्तर  कमजोर होते गये परिणाम सामने है। अपेक्षाकृत अत्यन्त छोटे भूभाग भारत में भी अल्पसंख्यक/बहुसंख्यक ही नहीं समय-समय पर प्राय: गाय, सहिष्णुता/असहिष्णुता जैसे अनचाहे विवादों मे उर्जा गँवाते ही आरहे हैं।
जेडी सिंह

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