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कर्नाटक मे हुए चुनाव और वहां सरकार बनाने की आपाधापी के बीच एक समाचार दब सा गया है जो मेरी दृष्टि मे शुभ है फेसबुक पर सन्तोष त्रिपाठी की पोस्ट

न्यायालय से इकोसिस्टम के सर्वोच्च की विदाई

कर्नाटक में हुये चुनाव और वहां सरकार बनने की आपाधापी के बीच एक समाचार दब सा गया है जो मेरी दृष्टि में शुभ है।

सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस चेलामेस्वर इस मई महीने की 31 तारीख को अपने पद से निवृत हो जायेंगे और उसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय में कई दशकों से स्थापित किये गए कांग्रेसी इकोसिस्टम के सदस्यों की विदाई भी प्रारम्भ हो जायेगी।

जस्टिस चेलामेस्वर अब जाने वाले जरूर है लेकिन वे भारत की न्यायपालिका के इतिहास में,

इस संवैधानिक संस्था की अस्मिता को धूमिल करने वाले एक विवादास्पद न्यायाधीश के रूप में हमेशा याद किये जायेंगे।

जस्टिस चेलामेस्वर ने अपने कार्यकाल के आखरी वर्ष में जहां भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा से अपने राजनैतिक मतभेदों को लेकर सार्वजनिक बयान बाजी व राजनीतिज्ञों की तरह प्रेस कॉन्फ्रेस बुलाकर, उन्हें ब्लैकमेल करने का कुत्सित प्रयास करके न्यायाधीश की गरिमा को कलुषित किया है

वहीं एनडीए की वर्तमान सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अपनी घृणा को सार्वजनिक कर,

कांग्रेस के न्यायलय में बनाये गये इकोसिस्टम को भारतीय जनता के सामने उजागर कर के, भारत पर बड़ा उपकार भी किया है।

वैसे तो मैं यह लेख 31 मई 2018 को लिखता लेकिन जस्टिस चेलामेस्वर ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में जो परमपरायें तोड़ रहे है उस पर लिखना बनता है ताकि

हम यह समझ सके कि विपक्ष व कांग्रेस सृजित इकोसिस्टम किस मानसिक विछिप्तता के दलदल में धसता जारहा है।

सबसे पहले जस्टिस चेलामेस्वर ने सर्वोच्च न्यायालय के बार एसोसिएशन द्वारा उनके सेवानिवृत्त होने पर दी जाने वाली विदाई के आयोजन का निमंत्रण यह कहते हुये अस्वीकार कर दिया कि वे अपनी सेवानिवृति को व्यक्तिगत रखना चाहते है।

यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है लेकिन इससे यही समझ में आता है कि जस्टिस चेलामेस्वर जिन परिस्थितियों और विवादों को लेकर अपने कार्यकाल को पूरा करते हुए बढ़े है,

वहां सेवानिवृति होने को स्वीकार नही कर पाये है।

उन्हें जिन संभावनाओं और जिन उद्देश्यो की पूर्ति के लिये कांग्रेस के इकोसिस्टम ने आगे बढ़ाया था,

वे वहां उसको लेकर आज अपने को असहाय, हताश और पराजित होने का अनुभव कर रहे हैं।

जस्टिस चेलामेस्वर की सेवानिवृति का दिन तो 31 मई 2018 है लेकिन कोर्ट के ग्रीष्म अवकाश पर बन्द हो जाने के कारण उनका आखिरी कार्यदिवस, आज 18 मई 2018 होगा।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में शुरू से एक परिपाटी रही है कि जिस न्यायाधीश को सेवानिवृत होना होता है, वह अपने आखरी कार्यदिवस में, मुख्य न्यायाधीश के साथ बेंच में बैठता है और सामने आये मुकदमो को सुनता है।

अब इस सप्ताह, 14 मई से 18 मई तक का जो रोस्टर, जिसमे यह इंगित होता है कि कौन सी बेंच कौन सा मुकदमा सुनेगी,

वह सामने आया है तो यह देख कर दुखित हुआ कि सर्वोच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार द्वारा घोषित 18 मई 2018 का रोस्टर, के अनुसार 18 मई 2018 को जस्टिस चेलामेस्वर, मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के साथ बेंच पर नही बैठेंगे बल्कि कोर्ट नम्बर 2 में वे अपनी वर्तमान की ही बेंच, जस्टिस संजय किशन कौल के साथ मुकदमे सुनेंगे।

यह इसलिये हुआ क्योंकि जस्टिस चेलामेस्वर ने मुख्य न्यायाधीश दीपक कुमार मिश्रा के साथ बैंच में बैठने से इनकार कर दिया था।

इस तरह आज जस्टिस चेलामेस्वर ने जाते जाते एक स्वस्थ परिपाटी को तोड़ने की कोशिश की लेकिन अंतिम समय मुख्य न्यायाधीश के आग्रह पर वे आज पुरानी परिपाटी का निर्वाह करते हुये, उन्ही के साथ बैंच में बैठे मुकदमे सुन रहे हैं।

उनका इस प्रकार लगातार पुरानी मान्यताओं और शिष्टाचार की मर्यादाओं को तार तार कर देना यही बदलाता है कि जस्टिस चेलामेस्वर एक न्यायाधीश के तौर पर स्थिर मस्तिष्क के नही रह गये है।

उनकी व्यक्तिगत राजनैतिक निष्ठा ने उन्हें जहां निष्पक्ष न्यायाधीश नही रहने दिया है वही पर उसको सर्वजिनिक जीवन मे छुपाने में असफल होने के कारण आज भारत की जनता के सामने उन्हें एक दूषित चरित्र बना दिया है।

उनका मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा से विद्वेष और उन्हें सर्वजिनिक रूप से नीचा दिखाने के कुत्सित प्रयास ने उन्हें अपने ही अंतिम काल मे बेहद छोटा बना दिया है।

देखा जाये तो जस्टिस चेलामेस्वर का जाना एक सुखद घटना है। वस्तुतः उनका न्यायपालिका से विदा लेना,

न्यायपालिका में फैले कांग्रेस के इकोसिस्टम के प्रमुख की विदाई है। आज जब वो जारहे है तो भारत की जनता के लिये जस्टिस चेलामेस्वर न्यायपालिका की सड़ांध के रूप में जारहे है।

वो जाने अंजाने में, पिछले चार दशकों से कांग्रेस और सेक्युलर गिरोह द्वारा न्यायपालिका की व्यवस्था के साथ, किये गये बलात्कार से उत्पन्न परिणाम के प्रतीक बन कर जारहे है।

मेरी दृष्टि में जस्टिस चेलामेस्वर एक न्यायाधीश के रुप में सेवानिवृत्त नहीं हो रहे हैं बल्कि उनका सर्वोच्च न्यायालय से निकलना, कांग्रेस इकोसिस्टम द्वारा बनाये गये एक उत्पाद की वैधता का अंत है।

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