लखनऊ। डॉ. सोनेलाल पटेल ने जिस मिशन के साथ अपना दल का गठन किये थे, वह पारिवारिक वर्चस्व की लड़ाई में कमजोर पड़ गया। मां-बेटी की आपसी राजनैतिक लडा़ई से पार्टी के अस्तित्व पर ग्रहण लग गया।
दरअसल, डॉ. सोनेलाल पटेल कभी कांशीराम के करीबी माने जाते थे, जब बसपा पर मायावती का आधिपत्य हुआ तो सोनेलाल पटेल ने बसपा को टक्कर देने के लिए अपना दल का गठन किया। उनका उद्देश्य था कि वे जमीनी लोगों के लिए राजनीति करें। इसके लिए उन्होंने संघर्ष भी किया। पूर्वांचल में पार्टी को मजबूत करने के लिए वे प्रयासरत रहे। अपने जीवन काल में कभी चुनाव न जीतने वाले सोनेलाल पटेल की पसंदीदा सीट वाराणसी की कोलअसला थी, जो बाद में दो विधानसभा क्षेत्रों रोहनिया और पिण्डरा मे विभक्त हो गयी।
अपना दल के गठन की कहानी भी काफी रोचक है। दरअसल, मायावती को टक्कर देने के लिए अपना दल का गठन हुआ था। अपना दल के गठन के लिए डॉ. सोनेलाल पटेल ने पहले कुर्मी समुदाय के बीच जनसंपर्क किया और फिर नवंबर 1994 में लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में एक रैली बुलाई थी। तत्कालीन लोगों का मानना है कि इस रैली में कुर्मी समुदाय ने अपनी ताकत का अहसास करा दिया था और रणनीतिकारों को साफ लग गया था कि यूपी में एक और जातीय क्षेत्रीय पार्टी का उदय होने वाला है। इसके 11 महीने बाद 1995 में सरदार पटेल जयंती पर कुर्मी समाज की रथ यात्रा को खीरी में रोका गया। फिर नवंबर में बेगम हजरत महल पार्क में रैली पर रोक लगाई गई। रैली बारादरी पार्क में हुई। इसी रैली में अपना दल के गठन की घोषणा की गई। उसके बाद से सोनेलाल पटेल जब तक जिंदा रहे तब तक पार्टी फलती, फूलती रही।
डॉ. सोने लाल पटेल का निधन एक सड़क हादसे में हो गया। इस घटना के बाद उनकी पत्नी कृष्णा पटेल के हाथों पार्टी की बागडोर मिली। उन्होंने पार्टी में संगठन को मजबूत करने का काम किया।
अपना दल का खाता वैसे तो 2007 में ही खुल गया था, लेकिन डॉ. सोनेलाल पटेल खुद चुनाव हार गए थे। उनकी मौत के बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल वाराणसी के रोहनिया विधानसभा की विधायक बनीं। उसके बाद अनुप्रिया ने भाजपा से नजदीकी बढ़ा ली। 2014 में वे मोदी लहर में वह मिर्जापुर की सांसद बनीं और धीरे-धीरे यहीं से पार्टी के टूटने की प्रक्रिया शुरू हो गई। देखते-देखते मां-बेटी में ऐसी दूरियां बढ़ीं कि मामला भारत निर्वाचन आयोग तक पहुंचा और आयोग को बड़ा फैसला लेना पड़ा जिसके चलते डॉ. सोने लाल पटेल द्वारा खड़ा किया गया बड़ा राजनीतिक घराने के वजूद पर संकट के बादल छा गये।
राजनीति के चाणक्यों के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी डॉ. सोनेलाल पटेल को बहुत मानते थे। वे सोनेलाल को अक्सर अपने साथ हवाई यात्रा पर ले जाते थे। दरअसल, सोनेलाल पटेल को अध्ययन का गहरा शौक था। वे हरक्षेत्र के बारे में अच्छी जानकारी रखते थे।
डॉ. सोनेलाल पटेल अपनी जुबान के कारण अक्सर विरोधियों के निशाने पर आते। वे जब भी सभा करते उसमें पटेल और दलित के उत्थान की बात करते, लेकिन सवर्णों को लेकर कटु शब्दों का प्रयोग करते। इसी कारण उनकी छवि पर सवाल उठने लगे थे। डाक्टर सोने लाल का जो सपना था अधूरा रह गया। वे कुशल राजनीतिज्ञ थे। पूर्वांचल मे अपना दल की नींव काफी मजबूत थी। लेकिन आपस का खीचतान,राजनैतिक उठापटक से पार्टी का विभाजन हो गया। सोने लाल के विरासत को लेकर जंग जारी है। अनुप्रिया पटेल पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए उनके सपनों को साकार करने मे जुटी है। काफी हद तक सफलता की ओर है। अपनादल एस की नेतृत्व कर रही अनुप्रिया पटेल निरन्तर डा. सोनेलाल की गरिमा को बढ़ा रही है। इधर पति के विरासत को कृष्णा पटेल भी मजबूती से आगे ले जा रही है। वर्तमान समय मे अधिकान्शतः कुर्मी समाज के लोग अनुप्रिया पटेल को अपना नेता मानने लगे है।
जेडीसिंह सतगुरु धाम बर्राह जौनपुर