प्रयाग। यथार्थ गीता के प्रणेता तत्व दृष्टा महापुरुष स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज ने यथार्थ गीता कैम्प में श्रद्धालु भक्तों के बीच गीतोंक्त युद्ध क्या है? इसका विशद विवेचना किया। स्वामी जी ने बताया कि श्रीमद्भागवत गीता से कर्म की शिक्षा देकर मोह ग्रस्त अर्जुन को धर्म मार्ग पर चला दिया। क्योंकि अर्जुन तो कुरुक्षेत्र में दोनों सेनाओं के बीच जाकर हतप्रभ हो गया कि गोविंद मैं युद्ध नहीं करूंगा ।इसी पर पूज्य स्वामी जी ने बताया कि गीतोंक्त युद्ध क्या है? तो स्वामी जी ने कहा कि इस धर्म क्षेत्र में तुझे यह अज्ञान कहां से पैदा हो गया। भगवान ने अर्जुन से कहा। अर्जुन तुम इस धर्ममय युद्ध को करके अपने सहज स्वरुप को प्राप्त कर लोगे। यह युद्ध कौरव और पांडवों का यानी सजातीय और विजातीय पक्षों का , विद्या और अविद्या का, देव और असुर का, भगवान ने कहा अर्जुन तू दैवी संपदा को प्राप्त कर विकारों को नष्ट करके सद्गुणों को हृदय से धारण कर। इस गीतोक्त कर्म अर्थात साधना के, चिंतन के द्वारा हम विकारों पर विजय प्राप्त कर पाएंगे। यह वास्तविक विजय है। भगवान ने गीता में अर्जुन से कहा अर्जुन चित्त का निरोध करके उस सनातन परमात्मा को पाने की विधि विशेष का नाम यज्ञ है ।इस यज्ञ को कार्य रूप देना कर्म है। इस कर्म का आचरण ही धर्म है, दायित्व है और इस कर्म योग मे आरंभ का नाश नहीं होता। इसमें सीमित फल रूपी दोष भी नहीं है। इस कर्म रूपी धर्म का किंचित मात्र साधन जन्म मृत्यु के महान भय से उद्धार करने वाला होता है। अर्थात इस कर्म को कार्य रूप देना ही धर्म है । धर्म अपरिवर्तनशील है। धर्म कभी बदलता नहीं ।पूज्य स्वामी जी के साथ मंचासीन उनके प्रिय शिष्यों में बच्चा बाबा ,नारद महाराज, सोहम बाबा ,गुलाब बाबा ,चिंतन बाबा, मयानंद बाबा ,राजेश्वरानंद महाराज ,संतोष बाबा ,तानसेन बाबा, लाले बाबा ,सोहम बाबा, अंकुर महाराज, कमलेश बाबा आदि संत मौजूद रहे।