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नृत्य ही पूजा, नृत्य ही ध्यान, आम आदमी आज भी नाच रहा है, सभ्य आदमी नाच भूल गया है

*ओशो:-*

नाचने का अर्थ, तुम्हारी ऊर्जा बहे

मेरे लिए नृत्य ही पूजा है।

नृत्य ही ध्यान है।

नृत्य से ज्यादा सुगम कोई उपाय नहीं,

सहज कोई समाधि नहीं।

नृत्य सुगमतम है, सरलतम है।

 

क्योंकि जितनी आसानी से तुम

अपने अहंकार को नृत्य में विगलित कर पाते हो

उतना किसी और चीज में कभी नहीं कर पाते।

नाच सको अगर दिल भरकर तो मिट जाओगे।

 

नाचने में मिट जाओगे।

नाच विस्मरण का अदभुत मार्ग है,

अदभुत कीमिया है।

और नाच की और भी खूबी है

कि जैसे-जैसे तुम नाचोगे,

तुम्हारी जीवन-ऊर्जा प्रवाहित होगी।

तुम जड हो गये हो।

तुम सरिता होने को पैदा हुए थे,

गंदे सरोवर हो गये हो।

तुम बहने को पैदा हुए थे,

तुम बंद हो गये हो।

 

तुम्हारी जीवन-ऊर्जा फिर बहनी चाहिए,

फिर झरनी चाहिए। फिर उठनीं चाहिए तरंगे।

क्योंकि सरिता तो एक दिन सागर पहुंच जाती है,

सरोवर नहीं पहुंच पाता।

सरोवर अपने में बंद पडा रह जाता।

इसलिए तुमसे कहता हूं, नाचो।

 

नाचने का अर्थ, तुम्हारी ऊर्जा बहे।

तुम जमे-जमे मत खडे रहो, पिघलो।

तरंगायित होओ। गत्यात्मक होओ।

 

दूसरी बात:

नाच में अचानक ही तुम प्रसन्न हो जाते हो।

उदास आदमी भी नाचना शुरू करे,

थोडी देर में पायेगा, उदासी से हाथ छूट गया।

क्योंकि उदास होना और नाचना साथ-साथ चलते नहीं।

 

रोता आदमी भी नाचना शुरू करे,

थोडी देर में पायेगा,

आंसू धीरे-धीरे मुस्कुराहटों में बदल गये।

थका-मांदा आदमी भी नाचना शुरू करे,

शीघ्र ही पायेगा कि कोई नई ऊर्जा

का प्रवाह भीतर शुरू हो गया।

नृत्य दुख जानता ही नहीं।

नृत्य आनंद ही जानता है।

यह सारा जीवन नाच रहा है।

 

जरा वृक्षों को देखो, पक्षियों को देखो।

सुनते हो यह पक्षियों का कलरव?

फूलों को देखो, चांद -तारों को देखो।

विराट नृत्य चल रहा है। रास चल रहा है।

यह अखंड रास! तुम इसमें भागिदार हो जाओ।

तुम सिकुड-सिकुडकर न बैठो।

तुम कंजूस न बनो। तुम बहो।

 

मैं तुमसे कहता हूं नृत्य की परिभाषा:

जब नर्तक मिट जाये।

ऐसे नाचो, ऐसे नाचो कि नाच ही बचे। ऊर्जा रह जाये,

अहंकार का केंद्र न रहे।

और नृत्य जितनी सुगमता से परमात्मा

के निकट ले आयेगा और कोई

चीज कभी नहीं ला सकती।

और नृत्य बडा स्वाभाविक है।

आदमी है अकेला, जो भूल गया।

सारा संसार नाच रहा है आदमी को छोडकर।

 

आदमी भी नाचता था।

आदम आदमी अब भी नाच रहे हैं,

सिर्फ सभ्य आदमी वंचित हो गया है।

सभ्य आदमी नाच भूल गया है।

जड हो गया है। पत्थर की तरह हो गया है।

झरना नहीं है कि बहे। निर्झर नहीं है।

 

थोडा अपने को पिघलाओ। थोडा बहो।

तुम इधर बहे कि परमात्मा ने तुम्हें छुआ।

उसने छुआ कि तुम और बहे।

तुम और बहे कि उसने तुम्हेंऔर छुआ।

एक वर्तुल है।

धीरे-धीरे तुम ज्यादा-ज्यादा हिम्मत जुटाते जाओगे।

नर्तक खोता जायेगा, नृत्य बचेगा………

 

❣ _*ओशो*_  ❣

 

  •  *अष्टावक्र महागीता*

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