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मनुष्य के विकास का एक ही कारण है जिज्ञासा,संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पूज्य संत स्वामी अडगडानंद महाराज का शक्तेषगढ पहुंचकर किये दर्शन और लिए आशीर्वाद

शक्तेषगढ। मिर्जापुर। संघ प्रमुख मोहन भागवत वृहस्पतिवार को परमहंस आश्रम शक्तेषगढ मे पूज्य संत स्वामी अडगडानंद महाराज का दर्शन किये। पूजा स्थल पर शीश नवाये, आश्रम का भ्रमण किये। स्वामी जी से संघ प्रमुख ने कहा कि जिज्ञासा बहुत दिनो से थी। दर्शन करने की। अशोक सिंहल द्वारा यथार्थ गीता और सभी आश्रम का साहित्य प्राप्त हुआ। जिसका अध्ययन करता हू। मौके पर नारद भगवान, लाले महाराज, आशीष महाराज, सोहम बाबा,तानसेन महाराज सहित अन्य साधु संत महात्मा उपस्थित रहे। जिज्ञासा जीवन में होने वाली सभी चीज़ों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जीवन की शुरुआत से लेकर मृत्यु तक हम हर चीज़ को जानने के लिए तरह-तरह के प्रयत्न करते हैं.
किसी भी चीज़ को समझने के लिए सबसे ज़रूरी होती है- जिज्ञासा. जब हम विज्ञान या गणित के किसी सूत्र को समझने की कोशिश करते हैं तो जिज्ञासा ही उसे समझने में मदद करती है. रबीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था- हमारा सारा ज्ञान एवं सारी योग्यताएं जिज्ञासा के बिना व्यर्थ हैं. एक वैज्ञानिक का अलग-अलग रसायनों को मिलाना भी उसकी जिज्ञासा का ही कारण है कि वह किसी नए तत्व कि खोज कर सके. मंगल ग्रह की सतह पर यान का पहुंचना या चांद की सतह पर मनुष्य का पांव रखना सभी कुछ नयी दुनिया की खोज के लिए जिज्ञासा का ही कारण है. जिज्ञासा की एक और साथी है, जि़द. अगर किसी चीज़ के लिए हमें जिज्ञासा हो भी लेकिन उसे पूरा करने कि जि़द न हो तो वह कभी पूरी नहीं हो सकती. किसी भी काम को शुरू करने से लेकर उसे पूरा करने तक कई गति अवरोधक आते हैं लेकिन यह जि़द ही है जो उस सफ़र पर हमें कायम रखती है.
आदि मानव के काल से लेकर आज के आधुनिक समाज के मनुष्य तक हमारे विकास का एक ही कारण है, जिज्ञासा. जब मानव का सामना आग से हुआ था तब वह भी पहले उससे भयभीत हुआ था लेकिन यह उसकी जिज्ञासा ही थी कि उसने आग को पालना सीख लिया और उसे अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करना सीख लिया. इसी तरह उसने पत्थरों को अलग-अलग आकार देकर अलग-अलग उपकरण बनाने शुरू किये. जिज्ञासा ही सृजन का स्त्रोत है. किसी पेंटिंग को बनाने की प्रेरणा भी जिज्ञासा ही है. अलग-अलग रंगों को कैनवास पर बिखेर कर वास्तविकता को रचनात्मकता का जामा पहना कर एक अलग ही दुनिया बसा देना इसी जिज्ञासा का रूप है. यह एक सृजनकार की जिज्ञासा है जो उसे तरह-तरह के रंगों के साथ प्रयोग कर उसे कुछ नया रचने करने के लिए लगातार प्रेरित करती है. एक संगीतकार लगातार सात सुरों के ताल मेल से किसी नयी धुन की उधेड़बुन में लगा रहता है.
ईश्वर को पाने की जि़द में मनुष्य ने तरह-तरह के प्रयत्न किये हैं. ईश्वर के सभी दरवाज़ों पर दस्तक दी है. कभी चारों धाम की यात्रा या कभी हज की यात्रा करके. कभी अध्यात्म के मार्ग से खुद ही में ईश्वर को खोजे तो कभी मंदिर, मसजि़द गिरिजाघरों में.
हर संभव प्रयास सिर्फ ईश्वर और जीवन के सत्य को समझने के लिए।
कहने का मतलब है कि जिज्ञासा के बिना हमारा जीवन अधूरा है. किसी भी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने से लेकर हमारे जीवन को राह देने वाले कदम के पीछे जिज्ञासा का ही हाथ होता है. और यह सिर्फ हम मनुष्यों में ही नहीं बल्कि अन्य प्राणियों में भी जन्म से ही होती है. कभी इसी जिज्ञासा से हमें लाभ होता है, तो कभी नुकसान, लेकिन हमारे जीवन को आकार तो यही देती है. पढ़ाई करते समय भी रट-रट कर लोग परीक्षा में पास तो हो जाते हैं लेकिन असल जि़न्दगी में हार जाते हैं. वहीं जिज्ञासु, ना सिर्फ परीक्षा में उत्तीर्ण होते हैं, बल्कि उसी ज्ञान का इस्तेमाल कर बड़ी आसानी से अपनी जि़न्दगी को खूबसूरती से आकार देते हैं. यह ज़रूरी नहीं कि सिर्फ कागज़ों में दर्ज़ साहित्य ही जीवन में सफल होने के लिए महत्वपूर्ण है, सीखने के लिए जिज्ञासा होना बहुत ज़रूरी है. यही आपको किसी भी विधा को गहराई से समझने में मदद करती है.
जीवन की जिज्ञासाओं को शांत ज़रूर करें, लेकिन अपनी जिज्ञासा कभी ख़त्म ना होने दें. जब तक जीवन चलता रहेगा जिज्ञासा अलग-अलग रूपों में हमें नई-नई राहें दिखती रहेगी.
किसी ने कहा है कि- “मंजि़ल मिले ना मिले इसका ग़म नहीं/मंजि़ल की जुस्तजू़ में मेरा कारवां तो है.”यह जिज्ञासा ही है कि जो मंजि़ल की जुस्तजू के लिए जीवन में एक कारवां थाम लेती है. फिर जीवन नया और अनूठा बना रहता है.
साहित्य और कलाओं का संसार जिज्ञासा की ही मनोहारी दुनिया है. हिन्दी की महान कवियित्री महादेवी वर्मा ने अपनी कविताओं को जिज्ञासा का गान कहा था. उनका मानना था कि अपने ही मन में उठे कौतूहल ने उन्हें बचपन से ही साहित्य की ओर प्रवृत्त होने के लिए प्रेरित किया. वे एक कविता में अज्ञात ईश्वर की शक्ति को अनुभव करते हुए कहती है- “क्या पूजन, क्या अर्चन रे/उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे”. कवि भरत व्यास का लोकप्रिय गीत भी तो जिज्ञासा के ही दरीचे खटखटाता है- “हरी-हरी वसुंधरा पे नीला-नीला ये गगन… ये कौन चित्रकार है”.
वो जिज्ञासा ही थी जिसने किशोर उम्र में ही जीवन के प्रश्नों का समाधान खोजने के लिए आदि शंकराचार्य को पूरे भारत की सांस्कृतिक यात्रा के लिए प्रेरित किया. उन्हें ओंकारेश्वर में गुरू गोविन्द पदाचार्य का सानिध्य मिला और वेदांत दर्शन के अध्ययन ने अद्वैत का महान सिद्धांत दुनिया को दिखाया। जेडी सिंह

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