जौनपुर। लोकतंत्र के लिए धनबल की राजनीति घातक होता जा रहा है। जनता से चुने पंचायती राज के कुछ जनप्रतिनिधि खरीद फरोख्त के तहत अपना जमीर कुछ लाख रुपए मे बेच देते है। जिसकी आम जनमानस मे जुबानी चर्चा भी होती रहती है। मतदाताओ मे भी कुछ मतदाता शराब, मुर्गा के अलावा कुछ रुपये और अन्य सामग्री मे अपने वोट को बेच देते है। न मतदाता कुछ बोल पाता है न ही खरीद फरोख्त से बिके जनप्रतिनिधि। राजनीति के नाम पर व्यवसाय करने वाले लोग बहुमत के आधार पर थोक मे जनप्रतिनिधियो को खरीदते है। बिकने वालो की आत्मा गवाह है। खरीदने वालो की आत्मा गवाह है।जनता सब जानती है। बोलती कुछ नही। खास बात है कि धनबल की ताकत वाले चाहे ओबीसी सीट हो या अनुसूचित का सीट हो अपने तरीके से अपना उम्मीदवार उतारते है। चुनाव पूरी ताकत से साम दाम दण्ड भेद के साथ लड़ते है। जीत हो जाती है। फिर शपथ होता है। इसके बाद खेल शुरु हो जाता है। जो जनप्रतिनिधि होता है वह महज नाम का होता है। चुनाव जीताने वाला धनबली, बाहुबली पद का भरपूर तरीके से दुरुपयोग करता है। अपना शान बघारता है। तमाम पद नाम की लिखी गाडिया सड़को पर फर्राटे भरती है। एक प्रकार से देखा जाय तो धनबली लोगो का पूरा परिवार ही नेता हो जाता है और अपने,अपने तरीके से अपना साम्राज्य चलाता है। जबकि जनप्रतिनिधि कोई और है। लेकिन भरपूर रुतबा इनका होता है। ये लोग गरीबो को सताते है। उनका शोषण करते है और दबंगई भी करते है। खास बात है कि अधिकारी,कर्मचारी से भी रुतबा बनाने मे पीछे नही रहते। कभी, कभी दमदार अधिकारी से भेंट हो जाता है तो सब रुतबा धाराशाही हो जाता है। हालांकि धनबल की राजनीति करने वाले लोग शुद्ध रुप से व्यवसायी होते है। माहौल देख कर काम करते है। जो दमदार व्यक्ति होता है उसे मिला के रखते है। खुद फायदा कमाते है। उसको भी कमवाते है। सरकार की योजनाओ मे सरकार के सख्ती के बाबजूद कोई न कोई तरीका निकाल ही लेते है भ्रष्टाचार रुपी धन इकट्ठा करने के लिए। भाजपा सरकार मे शहर हो चाहे गांव विकास के चकाचौंध से जगमगा रहा है। लेकिन धनबल की राजनीति करने वाले कुछ राजनैतिक लोग अपने फायदे के लिए सरकार को बदनाम कर रहे है। जनता मे भी गलत संदेश जा रहा है। जेडी सिंह संपादक
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