जौनपुर। पूँजीपति भारत देश पर हाबी होते जा रहे है। भविष्य निकट आर्थिक संपन्नता लोगो के कमजोर होने की संभावना है। आउट सोर्सिंग के जरिए सरकारी गैर सरकारी नौकरियो मे कुशल और अकुशल श्रमिक काम कर रहे है। आठ,दस हजार,बारह हजार तक का उनको ठेकेदारी प्रथा के तहत तनख्वाह है। क्या बाल बच्चेदार लोग इतने पगार पर जीवन यापन कर पायेगे। औसतन अगर देखा जाय तो लगभग पाच लोगो का परिवार है तो पच्चीस से तीस हजार रुपए का खर्च महीने का रोटी कपड़ा दवा शिक्षा पर खर्च हो सकता है। मोदी और योगी ने सबको घर दे दिया। राशन दे रहे है। तमाम कल्याणकारी योजनाओ से सबको लाभान्वित कर रहे है। जीवन का दशा और दिशा बदल रहा है। सबसे गंभीर विषय है तमाम पारदर्शिता के बावजूद विकास कार्यो मे आर्थिक अनियमितता पर विराम नही लग सका। डाका गरीबो के हक पर ही डाला जा रहा है। मछलीशहर संसदीय क्षेत्र के पिण्डरा विधान मे करखियाव औद्योगिक क्षेत्र है। कंपनी बहुत है, सालो से काम कर रही है। अधिकांश कंपनी मे ठेकेदारी है। ठेकेदार अपने रेट के हिसाब से मजदूर को मजदूरी देते है। जबकि कंपनी टेन्डर के अनुसार श्रमिको को वेतन देती है।डियूटी कागजी आठ घण्टे की है। लेकिन अधिकांश कंपनी मे दो शिफ्ट मे चलता है। 6 बजे सुबह से 6 बजे शाम तक। इसके अलावा सात बजे सुबह से सात बजे शाम तक, या आठ बजे सुबह से आठ बजे शाम तक का शिफ्ट है।रात पाली मे काम करने वाला श्रमिक रात भर जागता है और काम करता है। जरा झपकी नही आ सकती। आयी तो कंपनी का मुलाजिम सख्त। जीवन की दिनचर्या लघु और दीर्घ शंका है। अगर एक से दो बार की हिमाकत हुई तो इतना तो सुपरवाइजर पूछ ही लेगा। बार,बार कहा जा रहे हो। अमूल दूध कंपनी की इस समय खूब चर्चा है। मोदी उदघाटन के लिए आने वाले है। इस कंपनी मे जुगाड जिसका था वह नियुक्त हो गया है। अधिकांश स्टाफ गुजरात के होने की चर्चा है। कंपनी के आस पास चर्चा है कि जिसका जुगाड था हो गया। दूध का कैरेट ढोने के लिये श्रमिक रंखे जा रहे है। इसके लिए आस पास के गांव के लोगो की भर्ती हो रही है। लोग यह भी कह रहे है दूध का कैरेट ढोने के लिए पूर्वाचल के जिलो गांवो से रंखे जा रहे है। आउट सोर्सिंग कंपनी के मालिक अधिकांश गुजरात, राजस्थान, नाशिक, महाराष्ट्र, फरीदाबाद के बताये जा रहे है। अब ठेकेदार के ऐजेन्ट घूम रहे है। 12 घण्टे का 12 हजार देने की बात है। कुछ लाचार बेसहाय काम पर लगे है तो कुछ चालाक श्रमिक जाच पड़ताल करके लौट आ रहे है। मानव समाज मे चर्चा कर रहे है। यह श्रमिको का शोषण है। पहले कंपनीओ मे यूनियन होता था। यूनियन लीडर श्रमिको का ख्याल रखता था। सब मिल जुलकर काम करते थे। लीडर श्रमिको का शोषण होने से बचाता था। मालिक के खिलाफ आवाज बुलंद करता था और अपनी मागो को मनवाता था। मालिक और नौकर का एक लगाव था। यह सब फिल्मो के चलचित्र मे है। यूपी और बिहार के श्रमिको ने राष्ट्र के विकास मे जो योगदान है। किसी प्रदेश का नही। मुबंई, गुजरात दिल्ली,पंजाब,राजस्थान के अलावा विदेशो मे भी श्रम की ताकत दी है। हमेशा से चाहे जो आन्दोलन हुआ है। मालिक जीता है मजदूर हारा है। श्रमिको का शोषण बंद हो जाना चाहिए,नही तो उनका आह मालिक को लगेगा। आने वाले दिनो मे खरब पति से रोड पति हो सकते है। जेडी सिंह संपादक