शक्तेषगढ।मिर्जापुर। परम पूज्य स्वामी अडगडानंद जी महाराज वर्ष 1955 में परमहंस स्वामी परमानंद जी की शरण मे अनसुइया आश्रम चित्रकूट में 23 वर्ष की उम्र में पधारे थे । आश्रम बहुत ही दुर्गम स्थल पर है । उस जमाने मे आश्रम तक का सफर बहुत कठिन था। जिससे भोजन की भी कोई व्यवस्था नही थी ।परन्तु साधक यदि होनहार है तो उसे अभावो की आंधी में भी जीने की कला होती है और लक्ष्य बेधने की सनक में सब कुछ भूल जाता है ।अपनी मंजिल तक पहुंचता है । स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज अपने प्रारंभिक दिनों में कभी कभी भूखे रहे परंतु अब गुरुपूर्णिमा के दिन लाखो भक्त भंडारे में खाते है । पहला भंडारा दस बीस भक्तो ने सूजी का हलवा बना कर शुरू किया था। अब कभी आप जाएगें तो देखेंगे प्रतिदिन भंडारा चल रहा है । हम भी वही हीरे हैं जो स्वामी जी है परंतु उन्होने अपने हीरे को तराश लिया और हम अभी भी असमंजस में है । यथार्थगीता का अनुशीलन करिए और महाभारत शुरू कर दीजिए , अर्जुन की तरह तत्वदर्शी महापुरुष की शरण लीजिए । गुरु की कृपादृष्टि हो गई तो विजय निश्चित है फिर अनर्थ नही होगा।जीवन व्यर्थ नही होगा इहलोक और परलोक समर्थ होगा । एक कदम आपको बढ़ना पड़ेगा बिना चले मंजिल नही मिलती है । ॐ या राम का जप इष्ट का ध्यान ही ब्रह्मविद्या है । आजमाइए —–; ,,,लम्बा पेड़ खजूर का फल लागे अति दूर
। चढ़े तो चाखे राम रस गिरे तो चकनाचूर ।।
ॐ परमहंस ।
सतगुरू दर्पण सच्ची ख़बर… सतगुरू दर्पण 