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भगवान की छवि को बार,बार निहारो,बिबिध अनुभूतियां होने लगेगी
: ठाकुर जी का दर्शन कैसे करना चाहिए ?
अशोक जी
हम लोगों को दर्शन करना नहीं आता ! हम मंदिर में जाकर कहते है – वाह ! बड़ी अच्छी मार्बल की मूर्ति है, सोने-चाँदी की मूर्ति है, काष्ठ की मूर्ति है. वहां जाकर भगवान् का दर्शन करना चाहिए न कि जड़-वस्तुओं का. रास्ते में जो नहीं देखना चाहिए, वो तो देखते चले जाते है – दूसरों के गुणदोष और भगवान् के सामने प्रेमपूर्वक दर्शन करके दृष्टि को कृतार्थ करना चाहिए तो वहां आँख मूँद के खड़े हो जाते है !
राम राम ! क्या दुर्भाग्य है ! कैसी सुन्दर झाँकी है, फिर भी आँख मूंदकर खड़े है. आँख मूंदकर खड़े है तो वो भी किसी निष्काम भाव से प्रार्थना करने नहीं बल्कि – हे भगवन ! वहाँ से चलकर हम यहाँ तक आए है, हमें अमुक-अमुक वस्तुओं की आवश्यकता है, आप ये दे दीजिये, ये दे दीजिये…बस पूरी लिस्ट बाँचकर सुनाई, फिर प्रणाम किया और चले आए. फिर दुबारा मुड़कर देखा ही नहीं. ये दर्शन दत्तचित्त नहीं है.
दर्शन नहीं – निहारो, ठाकुरजी को निहारो. चरण से लेकर मुखपर्यन्त और मुख से लेकर चरणपर्यन्त, बार-बार छवि को निहारो. जरुरी नहीं कि १०-२० मंदिरों में जाए, एक जगह दर्शन करो लेकिन निहारो और जब प्रेमपूर्वक ठाकुरजी को आप निहारने लग जाएंगेतो मंदिरों में ही नहीं आप के घर के ठाकुरजी में ही आपको विविध अनुभूतियाँ होने लगेगी !कभी लगेगा हमारे ठाकुरजी आज थोड़े गंभीर है, कभी लगेगा आज थोड़े अनमने से है, कभी लगेगा नजर से नजर तो मिलती है लेकिन वे शरमा रहे है और फिर तन्मयता बढ़ेगी तो वे बातचीत भी करने लगेंगे ! आश्चर्यजनक !