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कैसे चुकाऊँ इन साँसो का मोल रे ……….
जनम देने वाले , इतना तूँ बोल रे ……………
लाले बाबा
शक्तेषगढ। मिर्जापुर। यह तो भगवान ने बहुत ही अच्छा किया कि हमारी साँसो के आने और जाने की आटोमेटिक व्यवस्था कर दी । हमे साँस लेने और छोड़ने की कोई टेंशन नहीं , नहीं तो इन बहुमूल्य साँसों के चक्कर में हम अपने सारे काम ही भूल जाते । समय कम पड़ जाता संसार को देखने की । नींद भी नही आती । हर वक्त हम सजग रहते साँस लेने के लिए । वह तो शुक्र है परमात्मा का जिन्होने हमे इस झंझट से मुक्त करके साँसो की बागडोर अपने हाँथो मे ले ली ।………
उस दयालू ईश्वर का यह एहसान हम कैसे उतार सकते हैं , इस बारे मे क्या कभी हमने सोचा है ?…..यदि नहीं सोचा तो ,
हमारे जैसा एहसान फरामोश कोई नहीं हो सकता । जब हम भगवान के ही नही हो सकते तो किसी के भी नही हो पाएगे । अपने परिवार को जितना प्यार करते हैं , वास्तव मे हम परिवार वालो को छलते है । हम स्वार्थ वश प्रेम का नाटक करते है । यह नाटक एक ना एक दिन सामने आ ही जाता है और तब , अन्तिम क्षण मे हमारे हाँथ कुछ भी नही आता । साँस थमते ही घर से बाहर निकाल दिए जाते है । अरबों, खरबों की सम्पत्ति क्यो न हो , जमीन पर लिटा ही दिए जाते हैं ।
अतः संसार का काम छोड़ना नहीं है ! सिर्फ साधना का बीजारोपन ( गीता 2/40 ) करना है जिसके लिये
किसी दो या ढाई अक्षर का कोई एक नाम ( ॐ या राम ) का जाप करे ।
चार – छ: महीने ही किसी ऐसे तत्वदर्शी महापुरुष की सेवा और ,उनके द्वारा बतायी हुई टूटी – फूटी साधना (गृहस्थ जीवन जीते हुए भी )आपसे पार भर लग जाये तो वे जागृत हो जाएँगे ।आपसे बातें करने लगेंगे ,आपका मार्गदर्शन करेंगे ।वह प्रभु आपको चलायेंगे ,आपका मार्ग दर्शन करेंगे ।
जाप करने की विधि जानने के लिये मानव मात्र का धर्म शास्त्र – यथार्थ गीता का अनुशरण करे ।