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गांवो के परिवारो मे खत्म हुआ मालिक परंपरा,गुलामी स्वीकार है तो अच्छे इन्सान नही जीना मुश्किल होगा

जौनपुर। ग्रामीण परिवेश मे बहुत ही चालाकी की वजह से संयुक्त परिवार टूटकर बिखर गया है। सामूहिक परिवार का कभी एक मुखिया होता था। वह अनुशासित तरीके से मान सम्मान से परिवार का भरण-पोषण करता था। परिवार मे सबकी आवश्यकताओ का ध्यान रखते हुए उसे पूरा करने की कोशिश करता था। परिवार के बच्चो की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता था। देर से घर आने पर पूछताछ होती थी। सुझाव दिया जाता था समय से घर आ जाया करिये। परिवार मे प्रेम था। अब तो भाई, भाई मे नफरत है। पहले एक भाई दूसरे भाई के दुख सुख मे साथ रहता था। अब तो जो भाई चालाकी से परिवार के धन से धनवान बन जा रहा है। या कमा के धन जुटा ले रहा है। वह अपने कमजोर भाई को हर तरीके से परेशान करने व उसे नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है। यहा तक उसकी संपित्त को भी कब्जा करने की कोशिश करता
है। आज भी बहुत से ऐसे संयुक्त परिवार है जिनके आदर्शवादिता की चर्चा होती है। प्रत्येक गाँव मे दो से तीन ऐसे इन्सान होते है जो संयुक्त परिवार को तोड़ने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे है। दरअसल प्रधानी का चुनाव और गाँव की गोलबंदी भी इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है। गांव मे रह रहे है तो किसी एक गोल मे रहना होगा और गोल का जो नेता है उसका गुलाम बन के रहना होगा। उसकी बात को मानना पड़ेगा। वह जो कह रहा वही ठीक है इसके इतर अलग से कुछ सोच रहे है कर रहे है तो यह गुस्ताखी मानी जायेगी। जिसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। देखा जाय तो गांव मे दो चार की संख्या मे दबंग होते है। जो गोलबंद होते है और अपने तरीके से अपनी सरकार चलाने की कोशिश करते है। इनके इर्द-गिर्द हल्का सिपाही,लेखपाल,ग्राम सेक्रटरी भी रहते है। हालांकि आज का ग्रामीण युवा जनरेशन काफी जागरुक है। स्थिति परिस्थित का मूल्यांकन करते हुए अच्छी सोच के साथ आगे बढ़ रहा है। गांवो मे कुछ ऐसे तत्व भी होते है जो युवाओ को गलत दिशा मे भटकाने की कोशिश करते है। जगदीश सिंह संपादक सतगुरु दर्पण

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