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सतगुरु सीखाते है त्याग, चित्त रुपी चुनरी मे जब परमात्मा का प्रतिबिंब उतरा तो आलोक ऐसा कि पड़ जाता है चांद-सूरज की रोशनी भी फीकी

मिर्जापुर। यथार्थ गीता के प्रणेता तत्व द्रष्टा महापुरुष परमहंस स्वामी श्री अड़गड़ानंद जी महाराज जी का आगमन मिर्जापुर स्थित श्री परमहंस आश्रम औरा तुलसी महाराज जी के यहां हुआ। जहां पर लाखों की संख्या में भक्तों ने पूज्य श्री स्वामी जी का दर्शन कर कृतार्थ हुए। पूज्य स्वामी जी ने कबीर की वाणी बलम राउर देशवा में चुनरी बिकाय की यथार्थ व्याख्या लाखों भक्तों को साधक के अंतःकरण की वास्तविकता को उकेरा। पूज्य गुरुदेव भगवान ने अपने उद्बोधन में बताया कि कबीर के पिया प्रियतम साईं का नाम उनके आराध्य देव का है। उन्होंने एक परमात्मा को संबोधित करते हुए कहा कि हे प्रभु आपके देश में केवल चुनरी की कीमत है, अर्थात कबीर का आशय है कि परमात्मा के दरबार में केवल चुनरी बिकती है जिसका अर्थ निर्मल चित्त ही चुनरी है उसी की क़ीमत है निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।

चुनरी खरीद इ हम गइली बजरिया

चुनरी पहिरि हम गइली स्वसुरवा
चित्त की निर्मलता का बाजार मात्र सद्गुरु के पास है, इसके लिए पहले वे त्याग सिखाते हैं, सब कुछ त्याग कर सद्गुरु के निर्देशन में यंत्रवत चलना पड़ता है, इतना बड़ा मोल चुकाते नहीं बनता है इसीलिए चुनरी अमूल्य है। इसका त्याग कोई विरला ही कर पाता है। स्वसुरवा अर्थात स्व का तात्पर्य शास्वत स्वरूप से है। शरीर नश्वर है इसमें रहने वाला आत्मा शास्वत है, कबीर कहते हैं कि इस चित्त को निर्मल कर हम स्वस्वरुप की ओर आगे बढ़ें जब चुनरी अर्थात निर्मल चित्त स्व- स्वरूप से आप्लावित हुई तो चांद सूरज की जोति छिप जाय
अर्थात चित्त रुपी चुनरी में जब परमात्मा का प्रतिबिंब उतरा तो इतना दिव्य प्रकाश कि चांद सूरज की ज्योति भी उस प्रकाश के समक्ष फीकी पड़ गई। न तद्भास्यते सूर्यो न शशांको न पावक:
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्भाम परमं मम।।

श्री कृष्ण कहते हैं कि योगी जिसमें प्रवेश करता है उस परमपद को न सूर्य प्रकाशित करता है न चंद्रमा न अग्नि।
चांद सूरज की जोति छिप जाय

जे यह चुनरी जतन कर पहिरे वही सुहागिन बलम को सुहाय
सद्गुरु सबही के दिहले पहिराइ

जिन्होंने इस चुनरी को यत्नपूर्वक पहना यत्न का अर्थ है
अभ्यास असंशयं महाबाहो मनो दुनिंग्रहं चलम
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गुह्यतम श्री कृष्ण कहते हैं कि अर्जुन इसमें कोई संदेह नहीं कि मन बड़ा दुर्जय है किंतु सतत् अभ्यास और वैराग्य के द्वारा वह वश में हो जाता है। कबीर कहते हैं कि इस चुनरी को जतन कर पहिरे सतत अभ्यास से जाता है
जागत में सुमिरन करे सोवत में लव लाय
सुरत डोर लागी रहे तार टूटि न जाय
वही सुहागिन बलम को सुहाय
कबीर कहते हैं कि ऐसे ही निर्मल चित्त वाले भगवान को प्रिय है।
कहत कबीर सुनो भाई साधो
सद्गुरु सबही के दिहले पहिराइ
कबीर कहते हैं कि सन्तों सुनों भाविको सुनों अनादिकाल से जब किसी ने प्राप्त किया है चित्त को निर्मल कर उसमें परम चेतन का प्रतिबिंब पाया है । वह तभी संभव है जब सद्गुरु कृपा कर अपना लें।इस अवसर पर पूज्य स्वामी श्री राजाराम महाराज जी, श्री गुलाब महाराज जी, श्री लाले महाराज जी, रामरक्षानंद महराज जी, श्री राकेश महराज जी, श्री रामजी महराज जी समेत आदि संतों का सत्संग हुआ और शशि बाबा, कुंवर बाबा, दीपक बाबा, आशीश महाराज, कैलाश महराज, अनुभवानंद जी व पालनहार जी मंच पर रहे मंचाशीन।इस अवसर पर अपार श्रद्धालु भक्तो की रही भीड़।

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