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एक बार ऐसी भी मृत्यु होती है जब सूक्ष्म शरीर आपके साथ नही होती है वैसी ही मृत्यु को मोक्ष कहते है

एक शरीर से दूसरे शरीर के यात्रा के बीच शरीर तो होता है, क्योंकि सूक्ष्म शरीर अगर न हो तो नयां शरीर ग्रहण नही किया जा सकता। सूक्ष्म शरीर को अगर विज्ञान की भाषा मे कहें, तो वह बिल्ट-इन-प्रोगरैम है, नये शरीर को ग्रहण करने की योजना है, ब्लूप्रिंट है। नही तो नये शरीर को ग्रहण करना मुश्किल हो जाएगा। आपने अब तक इस जिंदगी तक जो भी संग्रह किया   है – संस्कार, अनुभव, ज्ञान, कर्म – जो भी आपने इकठ्ठा किया है, जो भी आप है, सब उसमे है।

जैसे ही यह शरीर छूटता है, आप एक बिल्ट-इन-प्रोगरैम – जिंदगी भर की आकांक्षाओं, वासनाओं, कामनाओं सब संग्रहीत ब्लूप्रिंट, एक नक्सा – अपने सूक्ष्म शरीर मे लेकर यात्रा पर निकल जाते हैं। वह नक्सा प्रतिक्षा करेगा, जब तक आप नये शरीर को ग्रहण करें। जैसे हीं शरीर ग्रहण होगा, फिर जो – जो संभावना शरीर में उपलब्ध होने लगेगी, जिस-जिस चीज का अवसर बनने लगेगा, वह सूक्ष्म शरीर उन – उन चीजों को प्रकट करना शुरू कर देगा।

लेकिन एक बार ऐसी भी मृत्यु होती है, जब
सूक्ष्म शरीर आपके साथ नहीं होता। वैसी मृत्यु को ही मुक्ति, वैसी मृत्यु को ही मोक्ष…….. ।उसके बाद सिर्फ अस्तित्व होता है, फिर कोई अभिव्यक्त शरीर नही होता। असाधारण मृत्यु है वह, महामृत्यु है वह, समाधि की होती है। जो इस जन्म में समाधि को उपलब्ध होगा, उसका मतलब होता है कि उसने जीते जी अपने सूक्ष्म शरीर को विसर्जित कर दिया, बिल्ट-इन-प्रोगरैम तोड़ डाला……… *

ओशो * गीता दर्शन।

( संकलन – स्वामी जीवन संगीत  )

अशोक कुमार पंचाल

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