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ईश्वर पथ की दूरी शिक्षा के बल पर तय नहीं की जा सकती, सामाजिक उपाधियों का भी इसमें सहयोग नही

💐|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||💐

🔯ईश्वर पथ की दूरी शिक्षा के बल पर तय नहीं की जा सकती, सामाजिक उपाधियों का भी इसमें सहयोग नहीं। बिना पढ़ी- लिखी शबरी भगवान् को पा गयी। जिन्हें ” हारे पिता पढ़ाइ पढ़ाई ” वे कागभुसुंडि अपने समय के सर्वोपरि ज्ञानी निकले। परमहंस जी महाराज ( पुज्य दादा गुरू ) मात्र तीन दिन विद्यालय गये थे; किन्तु उनकी जब बाड़ी निकलती तो अच्छे- अच्छे विद्वानों की विद्या का कोई उपयोग नहीं रह जाता था। वे कहते थे- ” तुम कहो कागज की लेखी, हम कही आँखिन की देखी। ” ईश्वर पथ में ऐसे ही तत्वदर्शी महापुरुष कबीर थे, जो कहते थे–

मसि कागद छूयो नहिं, कलम गही नहिं हाथ ।
चारिउ युग के महातम मुखहिं जनायी बात   ।।

🔯ईश्वर पथ में श्रद्धा और समर्पण लगता है। परमात्मा के प्रति समर्पित श्रद्धावान्, संयमित इन्द्रिय पुरूष ज्ञान प्राप्त करता है और तत्क्षण परमात्मा में स्थिति प्राप्त कर लेता है। ( गीता, 4/39 ) इस पथ में भगवान् स्वयं पढ़ाते हैं, आकाश बोलने लगता है। कबीर इसी स्तर के महापुरुष थे। उनकी मान्यता थी, भगवान् के संरक्षण में चलते हुए मन का भली प्रकार निरोध हो जाता है-

मन को मारि गगन चढ़ि जावे, अमरित घर की भिक्षा पावे
                                         उजड़ा शहर बसावै ….।।
छूटे कश्मल मिले अलेखा, इन नयनन साहिब को देखा ।।

            यह महापुरुष एक प्रकार से गीता ही पढ़ रहे हैं ( क्योंकि अन्तस्प्रेरणा में तो भगवान् ही हैं। )

इहैव तैर्जीतः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्यणि ते स्थिताः ।।
( गीता, 5/19 )

🔯अर्जुन! उन पुरूषों द्वारा इस जीवित अवस्था में ही सम्पूर्ण संसार जीत लिया गया जिसका मन समत्व में स्थित है। भला मन के समत्व की स्थिति और संसार जीतने से क्या सम्बन्ध हैं ? श्रीकृष्ण कहते हैं – वह ब्रह्म निर्दोष और सम है, इधर इसका मन भी निर्दोष और सम की स्थितिवाला हो गया इसलिये वह ब्रह्म में स्थित हो जाता है। यही कबीर कहते हैं कि ” मन को मारि गगन चढ़ि जावै। ” अमृत ? मृत्यु से परे अमृत तत्व है आत्मा। उस आत्मा के आलोक में ” अमरित घर की भिक्षा पावै। ”

          🔯” छूटे कश्मल “- सारा मलाल, सारा पाप दूर हो जाता है ; ” अलेखा “- अर्थात अनिर्वचनिया तत्व मिल गया। ” इन नयनन साहिब को देखा “- भगवान् दिखाई पड़े, वह दृष्टि मिली जो अर्जुन, संजय इत्यादि को मिली थी। यह प्रत्यक्ष दर्शन है। ऐसे महापुरुषों की वाणी इस पथ पर चलनेवाले पथिक ही समझ पाते हैं।
   
            🔯थोड़े ही दिनों में आप पायेंगे कि गुरू महाराज का स्वरूप अन्तःकरण से जागृत होकर मार्गदर्शन कर रहा है।

जे जन भींगे राम रस , बिगसित कबहुँ न रूख ।
अनुभव भाव न दरसिया, तेहि नर सुख न दुख ।।

           🚩|| ॐ श्री सद्गुरु देव भगवान की जय ||🚩
साभार शक्तेषगढ आश्रम चुनार मिर्जापुर

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