मड़ियाहूं (जौनपुर) भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी भारत में स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर जो विमर्श खड़ा किया गया है ,उससे यही धारणा फलीभूत होती है कि औपनिवेशिक भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जो संघर्ष हुए वे क्षणिक घटनाओं के परिणाम थे ।तथाकथित इतिहासकारों ने व्यक्ति विशेष को स्वतंत्रता के आदर्श नायक के रूप में प्रस्तुत किया, साथ ही औपनिवेशिक सत्ता के विरोध में जन आंदोलन या क्रांति को वर्ग विद्रोह की संज्ञा दी ।इस कारण स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में कहीं भी स्व का बोध नहीं होता। वस्तुतः भारत में अंग्रेजों का आक्रमण सुनियोजित आक्रमण था। उक्त बातें पंडित राजकिशोर तिवारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय मड़ियाहूं के सभागार में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद एवं अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अमृत महोत्सव कार्यक्रम में डॉ बालमुकुंद पांडे बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे ।उन्होंने कहा कि भारत में प्रारंभ से ही स्वप्रेरणा स्वस्फूर्त होकर भारत की अखंडता एवं स्वधर्म तथा स्व अस्मिता के लिए प्रतिरोध हुआ। अंग्रेजों और पश्चिमी विचारों से प्रभावित भारतीय और पश्चिमी इतिहासकारों ने स्वतंत्रता के बलिदानी नायकों को लुटेरा आतंकवादी तथा घटनाओं को कांड या विद्रोह के नाम से संबोधित किया। भारत में राष्ट्रीय आंदोलन स्वप्रेरणा और स्व की प्राप्ति के निमित्त था तथा अंग्रेजों के विरुद्ध प्रतिरोध था ।राष्ट्रीय आंदोलन की आग धीरे-धीरे शहर, शहर गांव, गांव तक पहुंची और जनता ने इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया ।परंतु ऐसे नायक ,नायिकाओं ,घटनाओं ,साहित्य संगठनों तथा संस्थाओं को इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं दिया गया और वे अज्ञात या अल्पज्ञ ही रह गए ।ऐसे नायक नायिकाओं घटनाओं साहित्य संगठनों तथा संस्थाओं के विषय में मौलिक जानकारी एकत्र कर राष्ट्रीय आंदोलन में उनके योगदान को जनता के समक्ष लाना होगा ।
कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश के सदस्य प्रोफेसर आरएन त्रिपाठी ने कहा कि भारत की स्वाधीनता के 75 वर्ष के अवसर पर संकल्पित यह अमृत महोत्सव हमारे लिए स्वर्णिम अवसर लेकर आया है कि स्वाधीनता संघर्ष के इतिहास लेखन में जिन महत्वपूर्ण तथ्यों को उपेक्षित कर दिया गया या रणनीतिबद्ध तरीके से पूरे विमर्श को असंतुलित कर दिया गया, उसे एक बार हम पुनः समेकित सत्य के रूप में उद्घाटित कर सके और स्वाधीनता संघर्ष का सत्यपरक विमर्श देश के समक्ष आ सके ।यह अवसर है ऐसे अज्ञात या अल्पज्ञात क्रांतिवीरो को पुनः प्रकाशित करने का, जिनके सर्वोच्च बलिदान को कुछ मुट्ठी भर समर्थ और चालाक इतिहासकारों ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ या एजेंडे के वशीभूत होकर प्रकाश में नहीं आने दिया।
राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना देवी प्रसाद सिंह ने कहा कि यह अवसर है उन क्रांतिवीरो की संकल्पना के अनुरूप पुनः स्व की प्राप्ति का, यह अवसर है औपनिवेशिक सत्ता की पूरी प्रक्रिया के सम्यक विश्लेषण का ,जिससे ब्रिटिश आतताई, दमनकारी और शोषणकारी चरित्र को ठीक से समझा जा सके ,साथ ही अवसर है प्रतिरोध की सभी धाराओं पर संतुलित विमर्श का। भारत का यह अमृत महोत्सव हमे सुअवसर दे रहा है कि आजादी की जो ऊर्जा हमसे छूट गई उसे हम पुनः प्राप्त करने का पूरा प्रयास करें। यह अवसर है पुनः अपनी जड़ों से जुड़ने का।यह अवसर है स्व पर अभिमान का और उसे पुनः पूरी तरह से जागृत करने का।
कार्यक्रम के पूर्व मुख्य अतिथि द्वारा सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित किया गया ।महाविद्यालय के छात्र, छात्राओं ने स्वागत गीत गाया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ सुरेश पाठक ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के प्रभारी डॉ विजय कुमार जायसवाल ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की सदस्य प्रोफेसर सुमन जैन ने किया। संचालन डॉ अनुराग मिश्र ने किया। इस अवसर पर अजयेद्र दुबे ,डॉक्टर आन्जनेय पांडे, डॉ. विनोद कुमार जायसवाल, डॉक्टर श्रीपाल सिंह सोम, डॉ गौरी शंकर त्रिपाठी, सहित अनेक गणमान्य उपस्थित रहे। अमृत महोत्सव खुद के स्वाभिमान को जगाने का अवसर,आजादी की उर्जा जो छूट गयी उसे पाने का करें प्रयास