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समस्या जटिल है पत्रकारो पर टिप्पणी करना बंद करिये,खुद के गिरेबां मे झाकिये कूडा करकट का लगा है अंबार

जौनपुर। पत्रकारो पर अब कोई भी टिप्पणी करने लगा है। पहले अच्छाई की रही अब बुराई की है। लोग कहते है बिक गया है। दलाल है। न जाने क्या,क्या कह रहे है। बात कुछ हद तक है तब लोग कह रहे है। जीवन यापन और घर परिवार पत्रकारो के पास भी है। ऐसे मे उन्हे आजीविका चलाने मे समस्या है। भारत की मूल पत्रकारिता का जमीर जिन्दा है। बहुत से ऐसे पत्रकार सम्पादक मिल जायेगे जिनकी अपनी एक गरिमा है। सोच है। मानव व राष्ट्रहित की विचार धारा है। लेकिन वे पत्रकारिता धर्म को निभाने मे मुफलिसी का जीवन जी रहे है। हा इतना जरुर है वर्तमान समय मे कुछ झपसट पत्रकार है उनका अपना रुतबा है। भवकाल है। जलवा है। सरकारी तंत्र और राज तंत्र दोनो मे उनकी पकड़ है। शान मे जान है। खबरो की नगण्यता है बचाव है। लालच है। पत्रकारिता की निपुणता कमजोर है। मैनेज का रोग है। कुल दोष पत्रकार मे ही देखना यह साबित करता है देखने वाले मे भी दोष है। गुण दोष की धरती है। दोष तो कुछ न कुछ तो सबमे है। सबके अपने,अपने संस्कार है, आचरण है वैचारिक सोच है। जिसकी जैसे माहौल मे परवरिश हुई है उसका वैसा सोच है विचार धारा है। मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही व्यवहार मे आचरण करता है। समस्या जटिल है पत्रकारो पर टिपण्णी करना बंद करिये,खुद के भी गिरेबा मे झाक लीजिए कूड़ा करकट का अंबार लगा है। जगदीश सिंह संपादक सतगुरु दर्पण जौनपुर

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