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जिसका स्वाभिमान जिन्दा है वह है क्षत्रिय,कुछ ठाकुरो को लेकर देश मे शोर-शराबा

जौनपुर। क्षत्रिय कुल मे जन्म लेना गौरव की बात है। अफसोस इस बात का है कि इस कुल मे आपस मे वर्चस्व के लिए एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश होती है। अपमानित किया जाता है।हालांकि ऐसी तुच्छ सोच के कम लोग है। जो अपनो से निम्नस्तरीय व्यवहार करते है, पुराने रईस है,शरीफ है।उनका बडप्पन काबिले तारीफ है।धनबल की ताकत है तो परमार्थ है। दीनता है। करुणा है। सहयोग है। ऐसा शरीफ क्षत्रियो मे है। जो पहले के दरिद्र हो और अचानक धनबल की ताकत मिल जाय और जुगाड से राजनीति का ककहरा सीख जाय तो उनके अन्दर जो संस्कार पहले से विद्यमान है उसका असर देखने को मिलेगा। क्षत्रिय शब्द वीरता को संबोधित करता है।भारत देश वीरता के लिए जाना जाता है। रघुकुल रीति सदा चलि आई,प्राण जाई पर बचन न जाई।क्षत्रिय का वर्णन नही किया जा सकता है। ठाकुर शब्द मे जरा कुछ अलग ठंग का रुतबा होता है। हिन्दी फिल्मो मे ठाकुर को खलनायक के रुप मे दिखाया गया है। ठाठ बाट शान, शौकत रजवाड़ा जैसा और कर्म नीचता का दिखाया गया है। शायद कुछ ठाकुरो पर फिल्मो का असर है,इसलिए उनके स्वभाव और संस्कार मे तुच्छता जैसे भाव है। जिसका स्वाभिमान जिन्दा है वह क्षत्रिय है। ठाकुर शब्द को लेकर अधिकांश जातियो मे घृणा का भाव है।नफरत है,लगता है फिल्मी ठाकुर के स्वभाव के कुछ ठाकुरो को लेकर देश मे कुछ ज्यादा ही शोर शराबा है। जगदीश सिंह संपादक सतगुरु दर्पण जौनपुर।

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