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रामनवमी विशेष: ईश्वर है एक,समस्त मानव जाति है उसकी संतान,राम मानव हृदय मे है विराजमान,जानिये,अनुभव मे होगा परमसत्ता का मार्गदर्शन, जीवन बन जायेगा सुगम,पूज्य स्वामी अड़गड़ानंद महाराज

राम एक है। जो सबके हृदय में विराजमान है
विश्व गुरु श्री परमहंस स्वामी अड़गड़ानंद महाराज
ने रामनवमी के उपलक्ष में यह बताया
कि भगवान श्री राम कौन है ?
और श्री राम का जन्म क्या है ?
श्रद्धालु भक्तो के बीच इस रहस्य को सरलतापूर्वक समझाया की
राम का स्वरूप क्या है और राम कौन है।
उन्होंने बताया कि कुछ ऐसी बातें हैं
इसको हमारे समाज ने नहीं जाना
और उसे ना जाने के कारण
हमारे हिंदू समाज को बहुत बड़ी हानि हुई है
कई प्रश्न है
जैसे धर्म क्या है
वर्ण व्यवस्था क्या है
ऐसे ही जनमानस के बीच एक प्रश्न है कि राम कौन है और राम का जन्म क्या है जैसा की आप सभी जानते हैं कि इस संसार का हर मनुष्य भगवान श्री राम से परिचित है लेकिन फिर भी रामचरितमानस के अनुसार राम कौन है। यह हम अब तक समझ नहीं पाये। उन्होंने बताया कि ईश्वर एक है और समस्त मानव जाति उसी एक ही ईश्वर की संतान है
“सब मम प्रिय सब मम उपजाए
सबसे अधिक मनुज मोहि भाए”
अर्थात सभी मनुष्य एक परमात्मा की संतान हैं और वह सभी परमात्मा को अत्यंत प्रिय हैं। उन्होंने बताया कि आज से दो ढाई हजार वर्ष पहले सृष्टि में कोई धर्म नहीं था, कोई जाति नहीं थी, कोई संप्रदाय नहीं था, पूरी दुनिया में केवल एक परमात्मा की पूजा होती थी, जिसका अवतार मनुष्य के हृदय में होता है। लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे हम उस हृदयस्थ परमात्मा राम को भूलते गए और वह परमात्मा राम केवल हिंदू कबीलों का भगवान बनकर रह गया। वह कहते हैं कि ईश्वर अंश जीव अविनाशी अर्थात् सभी एक ही ईश्वर(के अंश) की संतान हैं
पर क्या आज संपूर्ण संसार के लोग उस एक ईश्वर राम को मानते हैं नहीं क्यों ?
क्योंकि जो ईश्वर कण कण में व्याप्त है
उस ईश्वर को हमने एक संप्रदाय अथवा
एक कबीले का बनाकर रख दिया
जिस भगवान का सबके अंदर निवास है
जिसकी हम चर्चा करते हैं
वह राम जिसे कभी सारा विश्व मानता था।
आज वह सिर्फ हिंदुओं का भगवान बनकर रह गया।
लेकिन राम क्या है
और क्या है राम का जन्म
इस रहस्य को ना जानने के कारण ही सारा समाज अलग-अलग पूजा पद्धतियों में विभक्त हो गया,उन्होंने बताया कि पूरा रामचरितमानस भगवान शंकर के हृदय की रचना है
जो भगवान अलख है,आंखों से देखा नहीं जा सकता, अरूप है, जिसका कोई रुप नहीं
अजन्मा है, जिसका कभी जन्म नहीं होता अथवा जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती उसका अवतार क्या है वह कहां जन्म लेता है और कैसे जन्म लेता है इस पर कहते है कि
व्यापक एक ब्रम्ह अविनाशी
सत्य चेतन घन आनंद राशि”
वह परमात्मा जो सर्वत्र व्याप्त है अविनाशी है सत्य है और सबके हृदय में रहता है तो जो हृदय में रहता है वह हमें कैसे मिलेगा उसे हम कैसे प्राप्त कर सकेंगे, इस पर कहते हैं की
“नाम निरूपण नाम जतन से
सो प्रगट जिमी मोल रतन से”
“सुमिरिय नाम रूप बिना देखे आवत हृदय सनेह विशेषे” नाम के जप से वह परमात्मा हमारे हृदय से जागृत होकर हमारे अंदर अपने होने का आभास कराता है और अनुभव के माध्यम से हमें दिखाई भी देता है अर्थात नाम जपने से वह परमात्मा राम हमारे हृदय में जन्म लेता है अर्थात अवतार लेता है, जागृत होता है। जिसे हम नहीं जानते हैं। वह स्वयं ही हमें जना देता है।
यही राम है और यही राम का स्वरुप है।
अर्थात राम का जन्म केवल हृदय में होता है ना कि बाहर, कहीं वह परमात्मा राम जो सबके हृदय में है, कण कण में हैं, उस परमात्मा को अपने अंदर जागृत करने के लिए प्रकट करने के लिए प्रेम के साथ नाम का जप करने का विधान है। भगवान शंकर कहते हैं की “हरि व्यापक सर्वत्र समाना प्रेम ते प्रकट होई मैं जाना है”

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