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वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के 28वे दीक्षांत समारोह की तैयारी पूरी,22 सितंबर 2024 को उत्तर प्रदेश की राज्यपाल जौनपुर मे पीएच•डी• के उपाधि धारको को प्रदान करेंगी गोल्ड मेडल,संसार मे सबकुछ है दीक्षा मूलक

विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह का हुआ पूर्वाभ्यास
गोल्ड मेडल पाने वाले विद्यार्थियों को कराया गया अभ्यास
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के महंत अवेद्यनाथ संगोष्ठी भवन में शनिवार को 28 वें दीक्षांत समारोह की तैयारी पूरी कर ली गयी है। पूर्वाभ्यास क्रम मे विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. वंदना सिंह ने स्वर्णपदक पाने वाले विद्यार्थियों को पूर्वाभ्यास कराया। दीक्षांत समारोह रविवार को विश्वविद्यालय मे आयोजित है।उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल मेधावियो को गोल्ड मेडल प्रदान करेंगी। विद्वत समाज मे दीक्षांत’ शब्द का संधि विच्छेद है।
जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं। दूसरे शब्दों में संधि किए गए शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है।
दीक्षांत = दीक्षा + अंत
दीक्षांत में दीर्घ संधि होती है | श्रीराम और श्रीकृष्ण जैसे अवतारी महापुरुषों ने भी अपने गुरु के आश्रम मे रहकर शिक्षा और दीक्षा का अध्यात्म ज्ञान प्राप्त किया था।
मनुष्य जब से जन्म लेता है तभी से उसे गुरु की आवश्यकता होती है। उस समय माता-पिता उसके गुरु बन कर उसका पालन-पोषण करते है, उसे बोलना चलना, खाना-पीना सिखाते हैं, उसे नीति, धर्म, ज्ञान, विज्ञान की भी थोड़ी-बहुत शिक्षा देते है, साँसारिक और व्यवहारिक,शैक्षिक और आध्यात्मिक कामों में मनुष्य का कोई न कोई गुरु होता है।
“गुरु से दीक्षा लिये बिना जप, पूजा वगैरह सब निष्फल जाता है, इसलिये साधना में सबसे पहले दीक्षा ली जाती है। दीक्षा का अर्थ मनुष्य को दिव्य ज्ञान प्रदान कर उसके समस्त पाप पुँज का नाश कर देना है, ऋषि-मुनियों द्वारा ब्रम्ह ज्ञान की दीक्षा गुरुकुल के शिष्यो को देने की सनातनी परंपरा है। गुरुमुख होना,नामदान,मुरीदी,नामकरण कही न कही न कही से दीक्षा से मेल खाकर संधि के भाव को दर्शा रहे है।
इस संसार में सब कुछ शिक्षा के साथ दीक्षा मूलक है,बिना दीक्षा के जगत का कोई भी सुसम्पन्न नहीं हो सकता। जप, तपस्या आदि सबका आधार इसी पर है। दीक्षा प्राप्त कर लेने पर मनुष्य सिद्ध हो जाते हैं। बिना दीक्षा वाले मनुष्य को सिद्ध अथवा सद्गति नहीं मिलती। जगदीश सिंह संपादक

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