बदलापुर। जौनपुर। महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर दो दिवसीय श्री सीताराम हरिकीर्तन विगत वर्ष की भांति इस साल भी 25 फरवरी सुबह से ग्राम पूरासावल सिंह लेदुका जौनपुर सिद्धपीठ शिवाला
पर शुरु है। 26 फरवरी महाशिवरात्रि को कीर्तन का हवन होगा। इसके बाद प्रसाद वितरण के साथ समापन होगा। तत्पश्चात भव्य भण्डारा है। दरअसल राजनाथ सिंह इसी गांव के मूल निवासी है। ईश्वर भक्ति के लिए दूर,दूर तक जाने जाते है। बेहद सहज और सरल है। पूरासावल सिंह गांव स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर के पूजारी है। वैसे तो पूजारी नाम से ही सुदूर तक ख्याति है। हर पूर्णिमा को मा विन्ध्यवासिनी का दर्शन पूजन करने वर्षो से जा रहे है। सिद्धपीठ शिव मंदिर की मान्यता है। जो भी भक्त सच्ची आस्था से मनोकामना पूर्ण करने की मन्नत मांगता है। वह पूरा होता है। इसलिए दूर, दूर से भक्त भगवान शिव के दर्शन, पूजन के लिए आते रहते है। परमपिता परमात्मा शिव तब आते हैं जब अज्ञान अंधकार की रात्रि प्रबल हो जाती है। परम-आत्मा का ही नाम है शिव, जिसका संस्कृत अर्थ है ‘सदा कल्याणकारी’, अर्थात वो जो सभी का कल्याण करता है। बताया जाता है कि शिवरात्रि भारत में द्वापर युग से मनाई जाती है। यह दिन हम ईश्वर के इस धरा पर अवतरण के समय की याद में मनाते हैं। शिव के अलावा ओर किसी को भी हम ‘परम-आत्मा’ नहीं कहते। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहते है। बाकि सभी है मनुष्य। तो हम उसी निराकार परमपिता
शिव के साथ रात शब्द इसलिए जुड़ा है क्योकि वो अज्ञान की अँधेरी रात में इस सृष्टि पर आते हैं। जब सारा संसार, मनुष्य मात्र अज्ञान रात्रि में, अर्थात माया के वश हो जाता है, जब सभी आत्माएं 5 विकारो काम, क्रोध,मोह,लोभ,अहंकार के प्रभाव से पतित हो जाती हैं, जब पवित्रता और शान्ति का सत्य धर्म व स्वम् की आत्मिक सत्य पहचान हम भूल जाते है। सिर्फ ऐसे समय पर, हमे जगाने, समस्त मानवता के उत्थान व सम्पूर्ण विश्व में फिर से शान्ति, पवित्रता और प्रेम का सत-धर्म स्थापित करने परमात्मा एक साधारण शरीर में प्रवेश करते हैं।
परमात्मा पिता का हम बच्चों से यह वायदा है कि जब-जब धर्म की अति ग्लानि होंगी, सृष्टि पर पाप व अन्याय बढ़ जायेगा। तब वे इस धरा पर अवतरित होंगे। जबकि कलियुग के अन्त और नई सृष्टि सतयुग के संगम पर, स्वयं परमात्मा अपने वायदे अनुसार इस धरा पर अवतरित हो चुके हैं जैसा कि बताया जा रहा है, इस दुःखमय संसार (नर्क) को सुखमय संसार (स्वर्ग) में परिवर्तन करने का महान कार्य गुप्त रूप में करा रहे हैं।
महाशिवरात्रि के साथ जुड़े हुए आध्यात्मिक महत्व को समझने का ये सबसे अच्छा अवसर है। शिव-लिंग परमात्मा शिव के ज्योति रूप को दर्शाता है। परमात्मा का कोई मनुष्य रूप नहीं है और ना ही उसके पास कोई शारीरिक आकार है। भगवान शिव एक सूक्ष्म, पवित्र व स्वदीप्तिमान दिव्य ज्योति पुंज हैं। इस ज्योति को एक अंडाकार रूप से दर्शाया गया है। इसीलिए उन्हें ज्योर्तिलिंग के रूप में दिखाया गया है, अर्थात “ज्योति का प्रतीक”। वो सत्य है, कल्याणकारी हैं और सबसे सुंदर आत्मा है, तभी उन्हें सत्यम-शिवम्-सुंदरम कहा जाता है। वो सत-चित-आनंद स्वरूप भी है।
परमात्मा शिव त्रिमूर्ति हैं। वे ब्रह्मा द्वारा स्वर्णिम युग रूपी नव विश्व की स्थापना कराते हैं। वे उस विश्व की पालना विष्णु द्वारा कराते हैं और शंकर द्वारा पुरानी अधर्मपूर्ण कलयुगी सृष्टि का विनाश कराते हैं। शिवरात्रि के प्रसंग में अज्ञानता को रात्रि से दर्शाया गया हैं, अर्थात जहां पर ज्ञान का प्रकाश अनुपस्थित है। इसी अज्ञान रूपी अंधियारे के कारण ही वर्तमान में काम, क्रोध, लोभ, मोह, व अहंकार का अस्तित्व सर्वव्याप्त है। इस अज्ञान रूपी रात्रि में, अधर्म अपने चरम पर है। आज अशांति, अधर्म व गलत कर्म करना ही हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है, परन्तु यह सब कब तक चलेगा ? कौन हमे सदा के लिए सुख, शांति व प्रसन्नता प्रदान करेगा? इसीलिए यह आवश्यक हो जाता है कि वर्तमान समय में जब घोर अज्ञान की रात्रि इस धरा पर है, सभी आत्माएं परेशान और दुःखी हैं, तब स्वयं परमपिता शिव परमात्मा का आगमन इस धरा पर हो और वे यहाँ पर पुनः सुख, शांति, आनन्द, प्रेम, पवित्रता जैसे उच्चतम मूल्यों की स्थापना करें। पवित्र महाशिवरात्रि का यही दिव्य सन्देश है। हम परमपिता परमात्मा शिव को प्रेम से याद करके, अपने सभी पापो से मुक्त हो सकते हैं। शिवरात्रि पर्व में सारी रात जागने का यही महत्व है। जेडी सिंह,कृष्ण कुमार सिंह