सूफी संत अली शाह बुखारी की दरगाह पूरे विश्व के श्रद्घालुओं के आस्था का केंद्र है। इस दरगाह पर सभी धर्मो के लोग अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए बाबा से मन्नते मांगते हैं। ये दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव के प्रसिद्घ है। दरगाह से युक्त ये मस्जिद मुंबई के वर्ली समुद्र तट के छोटे द्वीप पर स्थित है।
शहर के मध्य में स्थित ये पवित्र दरगाह मुंबई की मान्यता प्राप्त सरहद है। सुन्नी समूह के बरेलवी संप्रदाय द्वारा इस मंदिर की देखरेख की जाती है। संत हाजी अली और उनके भाई अपनी माता की अनुमति से भारत आये थे । वे भारत में मुंबई के वर्ली इलाके में रहना शुरू किये। कुछ समय बाद उनके भाई अपने मूलनिवास स्थान को लौटने लगे तब संत हाजी अली ने अपनी माता के नाम एक पत्र भेजा।इस पत्र में उहोंने लिखा कि अच्छे स्वाथ्य का ध्यान रखते हुए मैं अब स्थायी रूप से यहां पर रहूंगा और इस्लाम का प्रचार करूगा इसलिए मुझे क्षमा करें। अपनी मृत्यु तक उहोंने अपने अनुयायीयों और लोगों को ज्ञान और इस्लाम की शिक्षा दी। हाजी अली का इतिहाससम्मानित मुस्लिम सुफी वली संत हाजी अली की दरगाह की स्थापना 1631 ई में की गयी थी । इसका निर्माण हाजी उसमान रनजीकर, जो तीर्थयात्रियों को मक्का ले जाने वाले जहाज के मालिक थे ,ने कराया था। हाजी अली एक धनी मुस्लिम व्यापारी थे उहोंने अपनी मक्का की तीर्थ यात्रा से पहले सारे धन को त्याग दिया था।मक्का की यात्रा के दौरान ही उनकी मृत्यु हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनका शरीर जोकि एक ताबूत में था ,बहते हुए मुंबई वापस आ जाता है। एक दूसरी मान्यता के अनुसार संत हाजी अली की दरगाह स्थल पर डूब जाने से मृत्यु हो गयी थी । जंहा पर उनके अनुयायीयो ने इस खूबसूरत दरगाह का निर्माण कर दिया।मान्यताऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति संत हाजी अली से सच्चे मन से प्रार्थना करता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। यहां बहुत बड़ी संख्या में श्रद्घालू मनोकामना पूर्ण होने पर बाबा को धन्यवाद देने आते हैं। पीर बाबा की बहन ने भी उनके नक्से कदम पर चलते हुए इस्लाम की तपस्या में लग गयी । वर्ली की खाड़ी से थोड़ी दूर पर उनका मकबरा बना हुआ है।संरचनायह दरगाह वर्ली की खाड़ी से 500 गज की दूरी पर समुद्र में एक छोटे द्वीप पर स्थित है। यह शहर की सीमा महालक्ष्मी से एक संकरे सेतुमार्ग द्वारा जुड़ा है। इस पुल में कोई रेलिंग नहीं है किंतु ज्वार के आने पर रस्सी बांध दी जाती है। इसलिए दरगाह तक तभी जाया जा सकता है जबकि समुद्र का जलस्तर कम हो। यह 500 गज की यात्रा जिसके दोनों तरफ समुद्र हो यहां की यात्रा की मुख्य आकर्षण है।इस दरगाह में भारतीय इस्लामिक सभ्यता का अद्भुत समन्वय दिखाई पड़ता है। 4500 मीटर में फैली इस सफेद मस्जिद में 85 फीट उंचा टॉवर मुख्य वास्तुशिल्पीय आकर्षण है। मस्जिद के अंदर स्थित दरगाह जरीदार लाल और हरी चद्दर से ढकी रहती है। इसे चांदी के सूक्ष्म फ्रेम द्वारा मदद दिया गया है।मुख्य हाल में संगमरमर के स्तंभ बने हुए हैं जिसे रंगीन सीसे द्वारा सजाया गया है। इन स्तंभों पर 99 जगहों पर अल्लाह नाम लिखा गया है। मस्जिद की ज्यादातर संरचना खारे समुद्रीय हवाओं की वजह से क्षीण हो गयी है। जिस कारण समय -समय पर इसका पुर्ननिर्माण किया जाता है। आगे चलकर इस मस्जिद को मकराना संगमरमर पत्थरों से बनाया जायेगा जिससे कि ताजमहल क ा निर्माण किया गया है।जियारत की पद्घति श्रद्घालू अपने मस्तक से दरगाह को तथा होठों से कपड़ों को चूमकर अपनी प्रार्थना के द्वारा पीर बाबा के प्रति श्रद्घा व्यक्त करते हैं। महिलाओं के लिए हर मस्जिद की तरह, अलग से कमरे बने हैं । प्रत्येक आगंतुक मस्जिद में प्रवेश से पहले अपने जूते निकालते हैं। चमत्कारपीर हाजी अली शाह बुखारी के जीवन के दौरान और मृत्यू के बाद कई सारे चमत्कार घटित हुए । जैसाकि कुरान-ए-पाक में कहा गया है कि जो पवित्र संत अल्लाह की राह में कुर्बान हो जाते हैं उन्हें कभी मृत नहीं कहना चाहिए। वे क ब्र में जिंदा रहते हैं और खाना तथा
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