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सत्यवादियो की ईश्वर करते है रक्षा, अधिकांश लोग झूठ बोलने की हानि को नही जानते,प्रत्येक व्यक्ति कर्म करने के लिए है स्वतंत्र

संसार में एक बहुत बड़ी भ्रांति है, कि "सत्य मानना, सत्य बोलना दुखदायक है।" "इसलिए लोग सत्य से घबराते हैं। सत्य को ठीक प्रकार से जानना नहीं चाहते। सत्य बोलना नहीं चाहते। सत्य को स्वीकार नहीं करते। जहां भी उन्हें झूठ बोलने में लाभ  दिखाई देता है, वहीं पर झूठ बोलते हैं।" इस बात पर कोई विचार नहीं करते कि "हम जो झूठ बोल रहे हैं, इससे कितनी बड़ी बड़ी हानियां होंगी।"

         अधिकांश लोग झूठ बोलने की हानियों को नहीं जानते। झूठ बोलने से जो तात्कालिक लाभ होता है, बस उसी को ध्यान में रखते हैं। इसलिए बिना संकोच जब भी अवसर आए, तभी झूठ बोल देते हैं।

           वास्तविकता तो यह है, कि "सत्य सदा सुखदायक होता है। लोग सत्य बोलने के लाभ नहीं जानते। यदि सत्य बोलने के लाभ समझ लें, और झूठ बोलने की हानियां समझ लें, तो सत्य का ही पालन करेंगे। तब वे सत्य ही जानेंगे, मानेंगे लिखेंगे बोलेंगे और सत्य का ही आचरण करेंगे।" "सत्य बोलने के अनेक लाभ हैं। उनमें से सबसे बड़ा लाभ यह है, कि संसार के लोग उस सत्यवादी पर विश्वास करते हैं। और यदि किसी व्यक्ति पर दूसरे लोग विश्वास करते हैं, तो उसे सब प्रकार से सुख और सहायता देते हैं। 

              परन्तु झूठ बोलने वाले का विश्वास समाप्त हो जाता है, और उसे कदम कदम पर दूसरे लोगों से अपमानित होना पड़ता है, और अनेक दुख भोगने पड़ते हैं। कोई उसको सहयोग नहीं देता, इत्यादि।" "परंतु संसार में अज्ञानी लोगों का बहुमत है। उन लोगों ने मिलकर ऐसा खराब वातावरण बना दिया है, जिससे अधिकांश लोग सत्य बोलने से घबराते हैं। अब चारों ओर झूठ का ही प्रचलन हो चुका है।"

           संसार में झूठ का प्रचलन हो जाने से झूठे लोगों का बहुमत हो गया है। "वे ऐसे झूठे अवसरवादी लोग जब चाहे झूठ बोलते हैं, और झूठ बोल बोल कर सत्यवादियों को दुख भी देते हैं। उनकी अनेक प्रकार से हानि भी करते हैं।" "झूठ बोल बोल कर सत्यवादियों को दुख देना, उनका विरोध करना ही उन्हें अच्छा लगता है। इसे मूर्खता नहीं, बल्कि महामूर्खता ही समझना चाहिए। क्योंकि ऐसे लोग ईश्वरीय दंड को नहीं समझ पा रहे। इसलिए वे सत्यवादियों को परेशान करते हैं।"

         "इसी कारण से फिर जो सत्यवादी लोग हैं, वे भी कभी-कभी घबरा जाते हैं। उन्हें घबराना नहीं चाहिए, बल्कि सत्य का लाभ समझकर सत्य को ही धारण करना चाहिए।"

          ईश्वर सभी सत्यवादियों का रक्षक है। वह कभी भी उनकी हानि नहीं होने देगा। "अर्थात् उचित समय आने पर मिथ्यावादियों को भयंकर दंड देगा। और मिथ्यावादियों ने जो तात्कालिक रूप से सत्यवादियों को दुख दिया, उनकी हानि की, ईश्वर उन सब हानियों की पूर्ति कर देगा।" इस बात में कोई सन्देह नहीं है।

          यहां इस बात को भी अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए, ऐसा नहीं है, कि "मिथ्यावादियों को हानि करने ही नहीं देगा।" इस भ्रांति से भी बचें। क्योंकि "प्रत्येक व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है। वह दूसरों की हानि कभी भी कर सकता है। हानि करते समय ईश्वर उस झूठे दुष्ट व्यक्ति का हाथ या ज़बान नहीं पकड़ेगा। परंतु जब फल देने का अवसर आएगा, तब उन मिथ्यावादी दुष्टों को बिल्कुल नहीं छोड़ेगा। उन्हें पूरा पूरा दंड देगा। और उन झूठे दुष्ट लोगों के कारण सत्यवादियों की जो हानि हुई, उसकी पूर्ति ईश्वर अवश्य करेगा।" 
            "इस प्रकार से वेदों के सिद्धांत को समझना चाहिए, और मिथ्या व्यवहार, मिथ्याभाषण आदि पाप कर्मों से बचना चाहिए।" 

----- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

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