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मन का हलन,चलन तभी शान्त होगा,जब अनवरत अंतर्मुखी होकर राम नाम का जाप होगा, पूज्य लाले महाराज

चंदवक के पास बलरामपुर आश्रम पर शक्तेशगढ़ के संतों का आगमन हुआ। हज़ारो की संख्या में भक्तजन संतों का दर्शन और आशीर्वचन प्राप्त किये। विशाल भंडारे का आयोजन रहा। जिसमें श्री चिंतनमयानंद जी महाराज बताये कि गीतोक्त कर्म क्या है। उन्होंने कहा कि कुछ भी कर डालने का नाम कर्म नहीं है, निर्धारित किया हुआ कर्म ही वास्तविक कर्म है और वो है स्वाश प्रस्वास का यजन ही यज्ञ और उसको चरितार्थ करना ही कर्म है, ओम या राम का जाप करना चाहिए, श्री तानसेन महाराज जी छोटे छोटे दृष्टांत के माध्यम से एक ईस्वर के भजन चिंतन पर बल दिये। कहा कि महापुरुष के शरण सानिध्य से ही ईश्वरीय राह मिलेगी तभी कल्याण होगा, श्री लाले महाराज कहा कि अपने मन को कैसे अंतर्मुखी करें। उन्होंने कहा कि सबका मन संसार के भोगों में आसक्त है लेकिन उसको आत्म चिंतन में प्रवृत्त करने के लिए नाम रूप लीला धाम कहीं न कहीं मन को लगाये रखना चाहिए, तभी मन का हलन चलन शांत होगा ये तब संभव है जब सद्गुरू हृदय से रथी हो जायँ और मार्गदर्शन देने लगें, यथार्थ गीता ही मानव धर्म शास्त्र है सबको अध्ययन करना चाहिए, श्री कृष्णानंद महाराज बताये कि नवधा भक्ति क्या है, कैसे प्राप्त करें संतों का शरण, सानिध्य की भक्ति की प्रथम सीढ़ी है ॐ अथवा राम का जप करना। तभी भगवान की अनुकूलता होगी और तभी मुक्ति संभव है, उन्होंने कहा कि घर, घर यथार्थ गीता होनी चाहिए तभी संसार से पार पाया जा सकता है

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