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प्रमुख, सांसद,विधायक,निधि द्वारा कराये गये विकास कार्यो के गुणवत्ता की जांच आखिर अधिकारी क्यों नही करते,शून्यता मे छिपा है प्रकृति का राज,रामनगर विकास खण्ड मे मनरेगा के शून्य की चर्चा ने पकड़ा जोर

जौनपुर। कुछ सरकारी अधिकारी,कर्मचारी को कमीशन की भूख है। जब मिल जाता है तब उनकी आत्मा तृप्त हो जाती है। येन-केन-प्रकारेण अपनी झोली भर करके आर्थिक साम्राज्य बढ़ाने की मन्शा के तहत अनैतिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। मनरेगा का कच्चा काम हो या पक्का,काम स्वीकृति का कमीशन अलग,अलग है। जैसी चर्चा जनमानस मे विदित है। जिस प्रधान के पास कमीशन देने की क्षमता है वह एकाध करोड तक का काम स्वीकृत करा लेता है। ऐसे बहुत से ग्राम सभा हो सकते है। जो विकास के चरम पर है। पेमेंट देते समय भी मजबूत कमीशन अधिकारी और कर्मचारी को चाहिए, जैसा कि चर्चा परिचर्चा मे लोग कहते है। न देने पर पेमेंट रुकने की संभावना से इनकार नही किया जा सकता है। जिस ग्राम सभा के प्रधान के पास कमीशन देने के लिए धन नही है तो उन्हे काम मिलना कठिन है। ऐसे मे ग्राम सभा का विकास प्रभावित हो सकता है। मनरेगा योजना के तहत विकास कार्य तो खूब हो रहा है। लेकिन जिले के रामनगर विकास खण्ड मे मनरेगा योजना के तहत कराए जा रहे अधिकांश कार्यो पर सिटीजन इन्फार्मेशन बोर्ड न के बराबर स्थापित किया जा रहा है। जबकि भुगतान के समय काम का बोर्ड लगा रहता है। जैसा बताया गया है। ऐसा भी हो सकता है डिजिटल युग है। लोग बाग कम्प्यूटराइज्ड विकास बोर्ड लगाके भुगतान करवा सकते है। धरातल पर कुछ और कागज पर कुछ और हो सकता है। ऐसे में संबधित कार्य के संबंध में लोगों को विस्तृत जानकारी नहीं मिल पा रही है। ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा मनरेगा योजना के तहत कार्यो की पारदर्शिता एवं गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिए इन कार्यो के संबंध में सिटीजन इन्फार्मेशन बोर्ड लगाए जाने हैं। मनरेगा योजना के प्रत्येक कार्य पर बोर्ड लगाना अनिवार्य है। बोर्ड की स्थापना के बाद इसका फोटोग्राफ भी उपलब्ध कराए जाना है।
मनरेगा कार्यो पर स्थापित किए जाने वाले सिटीजन इन्फार्मेशन बोर्ड में कार्य का नाम, वर्क आइडी, प्राकलन की धनराशि, कार्य प्रारंभ की तिथि, कार्य समाप्ति की तिथि, मजदूरी, सामग्री, सृजित मानव दिवस,मजदूरी दर, कार्यदायी संस्था, ग्राम पंचायत अधिकारी का नाम, तकनीकी सहायक का नाम आदि दर्ज होना चाहिए, बोर्ड की स्थापना के लिए भी मानक है। वर्तमान समय मे बताया जा रहा है कि खण्ड विकास अधिकारी रामनगर सख्त है। ग्राम सभाओ का रोटीन जाच चल रहा है। मनरेगा के द्वारा किये गये विकास कार्यो के गुणवत्ता की भी जांच हो रही है। साथ ही मानक के अनुसार विकास कार्य हुआ है और सिटीजन इन्फार्मेशन बोर्ड लगा है, तो ही भुगतान हो रहा है। जिन ग्राम सभाओ मे विकास का चरम है। उन्ही ग्राम सभाओ मे मनरेगा श्रमिक भी ज्यादा काम किये है। हो सकता है जो दौर चल रहा है अधिकांश ग्राम सभा का विकास शून्य की श्रेणी मे आ सकता है। हालांकि वर्तमान समय मे रामनगर विकास खण्ड मे शून्य की चर्चा जोर शोर से है। कमीशन के मामले मे किसी प्रधान से बात करिये तो पीड़ा व्यक्त करता है। दर्द भी बताता है। लेकिन आगे अधिकारी,कर्मचारी के साथ काम करना है। इसलिए खुलकर बोलने और मीडिया से बातचीत करने से बचता है। कमीशन दो तो ग्राम सभा का विकास होगा,कमीशन तो पेमेंट पास होगा। विकास कार्य का गुणवत्ता भी चाहिए, जाच के नाम पर अलग आर्थिक शोषण हो रहा है। आज की स्थिति क्या है जानकारी नही है। लेकिन पहले तरह,तरह के चंदे,भी प्रधानो से लिए जाते रहे। जनप्रतिनिधियो की अगर बात करे तो ग्राम प्रधान बहुत सहजता और सरलता से गांव मे सुलभ है। नागरिको के सुख और दुख मे परिवार की तरह खड़ा रहता है। प्रमुख, सांसद, विधायक, के निधि के विकास कार्यो की गुणवत्ता की जांच आखिर अधिकारी क्यों नही करते। जब अधिकारी,कर्मचारी कमीशन लेना बंद कर देगे और ईमानदारी से जनकल्याणकारी योजनाओ को क्रियान्वित करेगे तो सब कुछ ठीक हो जायेगा। पारदर्शिता झलकने लगेगा। शून्यता मे ही प्रकृति का राज छिपा है। जानेगा,जाननहारा, जेडी सिंह संपादक

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