जौनपुर। कमीशनखोरी के चक्कर मे रामनगर विकास खण्ड के विकास का पहिया धसता जा रहा है। विकास की धनराशि का बंदरबांट है। विकास कार्य की पत्रावली की स्वीकृति पर पहला सुनिश्चित कमीशन प्रधान को देना है। जैसा लोग बताते है। कमीशन नही तो काम नही,बहुत से ऐसे गैर तथाकथित प्रधान है जिनकी तूती बोलती है। बहुत से ग्राम सभाओ पर इनका आधिपत्य है,कुछ प्रधान की मर्जी है। क्योंकि ग्राम सभा के विकास का कामकाज इनके हवाले है। रामनगर विकास खण्ड मे लगभग तीस ग्राम सभा ऐसे है जिनके पास मनरेगा मजदूर पर्याप्त है। दो से तीन महीने का आंकडा देखेंगे तो होश उड़ जायेगे। अब तो काफी कम हुआ है कुछ ग्राम सभाओ मे 80,100,60,70 अब भी मजदूर काम कर रहे है। सुबह निकल जाइये किसी भी ग्राम सभा मे पता चल जायेगा कितने मजदूर काम कर रहे है। इस समय धान की रोपाई चल रही है। मजदूर खोजने पर भी नही मिल रहे है। बहुत से ऐसे प्रधान है जो मर्यादित तरीके से काम कर रहे है। उनका विकास कार्य सराहनीय है। मनरेगा का कार्य मानक के अनुसार करा रहे है। जो कमीशन नही देगा,उसको काम भी न के बराबर मिलेगा। जो कमीशन ज्यादा दे रहा है उसके लिए रामराज्य है। उसकी जांच भी नही होगी,वह चाहे अपने ग्राम सभा मे काम कराये या नही,मजदूर की हाजिरी लगती रहेगी। जिन,जिन ग्राम सभाओ मे ज्यादा मजदूर काम कर रहे है लाखों मे भुगतान हो रहा है। मेहरबानी किसकी है कमीशन बाबा की। जैसे माना कि किसी ग्राम सभा मे सौ मनरेगा मजदूर 15 दिन तक काम किया। कुल मजदूर 15 सौ हो गये। मजदूरी सरकार मनरेगा मजदूर के खाते मे भेज देगी। फिर क्या होगा मजदूर को दस पर्सेंट काटकर पैसा प्रधान को वापस लौटाना है। ऐसा हो रहा है। यह सब जानते है। प्रधान के सामने एक बहुत बड़ी मजबूरी होती है। मनरेगा श्रमिक काम कर रहे है तो उनको रोज पेमेंट कैश चाहिए,कैश अगर नही मिला तो काम करने नही आयेगे,यहा तक तो प्रधान अगर ऐडजेस्ट कर रहा है तो श्रमिक और गांव के लोग अच्छा मानते है। बिना काम के पेमेंट जब श्रमिको के खाते मे जाता है तो उनसे कहा जाता कौन काम किहे हयय,जवन मिलत बा लेई के रख ल। कुछ श्रमिक ऐसे होते है जो खाता मे पैसा आने पर रख लेते है। जो ऐसा करता है तो उसके खाते मे दोबारा पैसा नही जायेगा। उसी मनरेगा मजदूर को काम दिया जाता है जो आसानी से पैसा निकालकर वापस दे सके। अधिकारी,कर्मचारी भी उसी को टारगेट करते है जो कमीशन कम देता है। जो ज्यादा कमीशन देता है उस पर सुनामी का खतरा कम रहता है। जो कम दिया उसका बही खाता से नाम हटा दिया जायेगा। उसे शून्य मे धकेल दिया जाता है। एक तरफ कुछ लोगो का लाखों का पेमेंट होगा और फिर मोटा कमीशन का चक्कर चल जायेगा। जिसका,जिसका शून्य हुआ है उसको तो पीड़ा होगी और श्रमिको को मजदूरी देने मे भी समस्या हो सकती है। चाहे जो भी अधिकारी हो उन्हे चाहिए गलत को गलत और सही को सही का मूल्यांकन कर लेना चाहिए,कमीशनखोरी के चक्कर मे गलत कार्यो को बढ़ावा देना बहुत बड़ी नाइंसाफी है। जेडी सिंह संपादक