गीता मानव मात्र का धर्म शास्त्र स्वामी श्री अड़गड़ानंद जी महाराज
- प्रयागराज परमहंस आश्रम श्रृंगवेरपुर में गुरुवार को परम पूज्य स्वामी श्री अड़गड़ानंद जी महाराज ने सत्संग के दौरान भक्तों को बताया कि गीता मानव मात्र का धर्मशास्त्र है इस अवसर पर स्वामी जी ने बताया कि श्री कृष्ण कालीन महर्षि देव व्यास से पूर्व कोई भी शास्त्र पुस्तक के रूप में उपलब्ध नहीं था श्रुति ज्ञान की इस परंपरा को तोड़ते हुए उन्होंने चार वेद ब्रह्मसूत्र महाभारत भागवत एवं गीता जैसे ग्रंथों में पूर्व संचित भौतिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान राशि को संकलित कर अंत में स्वयं ही निर्णय दिया की गीता भली प्रकार मनन कर के हृदय में धारण करने योग्य है जो पद्धानाभ भगवान के श्री मुख से नि सृत वाणी है फिर अन्य शास्त्रों के संग्रह की क्या आवश्यकता मानव सृष्टि के आदि में भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से मिश्रित अविनाशी योग अर्थात श्रीमद्भागवत गीता जिसकी विस्तृत व्याख्या वेद और उपनिषद है विस्मृति आ जाने पर उसी आदि शास्त्र को भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के प्रति पुनः प्रकाशित किया जिसकी यथावत व्याख्या यथार्थ गीता है अर्थात एक ही शास्त्र है जो देवकी पुत्र भगवान ने श्री मुख से गायन किया गीता एक ही प्राप्त करने योग्य देव है गायन में जो सत्य बताया आत्मा सिवाय आत्मा के कुछ भी शाश्वत नहीं है उस गायन में उन महा योगेश्वर ने क्या जपने के लिए कहां ओम अर्जुन ओम अक्षय परमात्मा का नाम है उसका जप कर और ध्यान मेरा धर एक ही कर्म गीता में वर्णित परमदेव एक परमात्मा की सेवा में श्रद्धा अपने हृदय में धारण करें अस्तु आरंभ से ही गीता आपका शास्त्र रहा है भगवान श्री कृष्ण के हजारों वर्ष पश्चात परवर्ती जिन महापुरुषों ने एक ईश्वर को सत्य बताया गीता के ही संदेशवाहक हैं ईश्वर से ही लौकिक एवं पारलौकिक सुखों की कामना ईश्वर से डरना अन्य किसी को ईश्वर न मानना यहां तक तो सभी महापुरुषों ने बताया किंतु ईश्वरीय साधना ईश्वर तक की दूरी तय करना या केवल गीता में ही सांगोपांग क्रम से सुरक्षित है गीता से सुख शांति तो मिलती ही है यह अच्छा नाम में पद भी देती है देखिए श्रीमद्भागवत गीता कि टीका यथार्थ गीता यद्यपि विश्व में सर्वत्र गीता का समादर है फिर भी यह किसी मजहब या संप्रदाय का साहित्य नहीं बन सकी क्योंकि संप्रदाय किसी ने किसी रूही से जकड़े हैं भारत में प्रकट हुई गीता वश्य मनीषा की धरोहर है अतः इसे राष्ट्रीय शास्त्र का मांग देकर ऊंच-नीच भेदभाव तथा कला परंपरा से पीड़ित विश्व की संपूर्ण जनता को शांति देने का प्रयास करे। इस अवसर पर तानसेन बाबा आशीष बाबा शोभम बाबा लाले बाबा संतोष बाबा भावानंद बाबा सहित अन्य वरिष्ठ संत स्वामी जी के सत्संग के दौरान मौजूद रहे इस अवसर पर भारी संख्या में भक्तों ने स्वामी जी का आशीर्वचन सुना इसके अलावा आश्रम में आए हुए सभी भक्तों में प्रसाद वितरण किया गया।जेडी सिंह