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प्रधान पद की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे,बिके ग्राम सभाओं में प्रधानी करने वाले घुसपैठिये,करोड़ो की योजना स्वीकृत,मनरेगा मजदूर खाते से पैसा तो निकालकर देता है साथ ही आह की बख़्शीश, रामनगर ब्लॉक में 99 का चक्कर है

जौनपुर। रामनगर विकास खण्ड के अनेकों ग्राम सभाओं में प्रधानी करने वाले बाहरी घुसपैठियों ने पैठ बना लिया है। न तो यह गांव के नागरिक हैं। न मतदाता है। दूसरे गांव से आते हैं,प्रधान नहीं है फिर भी प्रधानी करते हैं। कोई बोलता है,चार गांव की प्रधानी कर रहे है तो कोई बोलता है,पांच, तो कोई दो तो कोई एक गांव की प्रधानी कर रहा है। जो जनता से जीता हुआ प्रधान है कहीं उससे ज्यादा रुतबा इनका है। अक्सर ब्लॉक परिसर के मनरेगा सेल में इनका जमावड़ा होता है। साथ ही कुछ अधिकारी, कर्मचारी भी इनके सहयोग में रहते हैं। रामनगर में 99 ग्राम सभा है। जिसमें 99 प्रधान है। जिसमें बहुतों ग्राम सभाओं में प्रधान तो है लेकिन प्रधानी करने वाले लोग भी सक्रिय हैं। जिन ग्राम सभाओं में प्रधानी करने वाले घुसपैठिये सक्रिय हैं। उनको वहां के प्रधान का पूरा का पूरा संरक्षण प्राप्त है। एवज में माहवारी फिक्स है। ग्राम सभा का मोलभाव हुआ है। साफ तौर पर यह कह लीजिए बाहरी घुसपैठियों को जनता से चुने प्रधान जी ने प्रधानी करने के लिए रंखा है। वह उनके नौकर चाकर है या कुछ और, यह तो प्रधान और घुसपैठी जाने। प्रधान पद संवैधानिक है। जिसकी एक गरिमा है। मर्यादित प्रधान बहुतों है। जिनकी कार्यशैली गरिमामयी है। जो चहुंमुखी ग्राम सभा के विकास में जुटे हैं। ग्राम सभाओं के विकास की योजना का बकायदा लोकल और नेशनल अखबारो मे टेंडर निकलता है और सचिव विकास कार्य को मूर्त रूप देते। फिर प्रधानी करने वाले घुसपैठिये कैसे ग्राम सभा में हस्तक्षेप कर रहे है। सोचनीय विषय है। दाल में तो कुछ काला है। दरअसल मनरेगा योजना में कोई लिमिट नहीं है,चाहे जितना विकास का काम हो। भारत सरकार और राज्य सरकार ग्राम सभाओं के विकास पर अकूत धन खर्च कर रही है। विकास दिख भी रहा है।शायद इसी योजना का लाभ लेनें के लिए घुसपैठी सक्रिय हैं। एक प्रकार से देखा जाय तो मनरेगा में कच्चा और पक्का का काम होता है। साठ और चालीस का रेसियो होता है। जिसमें मनरेगा श्रमिक काम करते हैं।‌ घुसपैठी यही से लाभ बनाते हैं और प्रधानी करते हैं। अधिकांश कच्चा काम कागज पर‌ होता। बरसात हुआ कहानी खत्म। फिर नये सिरे से काम होता है।‌माना कि एक दिन सौ मनरेगा श्रमिक कार्य किये तो पन्द्रह दिन में पन्द्रह सौ,साल में एक लंबा आय का काम हुआ। लाखों का व्यारा,न्यारा। पक्का का काम अलग। इसके अलावा ग्राम सभाओं के और अन्य मद है। जिससे विकास कार्य होता है। प्रधानी करने वाले घुसपैठिये कमीशन के बल पर करोड़ों की राशि का विकास योजना की फाइल बनाकर धन की स्वीकृति करा लेते हैं। इसके बाद अपना, गांव का और प्रधान जी का विकास करते हैं। खास बात है कि जिन, जिन ग्राम सभाओं को घुसपैठियों ने हथियाया है। वहां,वहां के प्रधान जैसे जैसे धन की आवश्यकता होती है। इनको आवाज देते। फिर ये भागें भागें उनकी मुराद पूरा करते हैं। चाहे ब्याजी ही पैसा क्यों न लेकर देना पड़े। हालांकि मनरेगा श्रमिकों की मजदूरी का पैसा उनके खाते में जाता है। जिसे श्रमिक निकालता है और प्रधानी करने वाले घुसपैठियों के हवाले कर देता है। जब मनरेगा मजदूर काम करता है उसका मजदूरी पूरा मिल जाता है। जब कागज पर काम होता है।तब चूंकि पैसा मजदूर के खाते में जाता है। पैसा ज्यादा होता। ऐसे में उनसे पैसा तो पूरा निकलवाया जाता है। लेकिन उन्हें कुछ मामूली रुपए दे दिये जाते हैं। मजदूर तो पैसा देता लेकिन साथ ही आह और बदुआ भी देता है। कभी, कभी तो मजदूर पैसा भी निकाल लेता है। देता भी नहीं। प्रधानी करने वाले घुसपैठिये मुंह ताकते रह जाते हैं। हालांकि ऐसा बहुत कम होता है। प्रधानी करने वाले घुसपैठियों को लेकर ग्राम सभाओं मे तरह, तरह की चर्चा है। साथ ही गांव के लोग यह भी कहते हैं। प्रधान ने गांव बेच दिया है। बाहरी लोग गांव में आकर प्रधानी कर रहे है। अपने गांव के मनरेगा मजदूरो का हक बाहरी प्रधानी करने वाले घुसपैठिये ले जा रहे हैं। जेडी सिंह संपादक

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