जौनपुर। मड़ियाहूं तहसील क्षेत्र के चीनी का मिठास कुछ खास है। जिसकी पकड़ सुदूर तक है। यह वह चीनी है जिसके कायल कुछ आम तो कुछ खास है। मैनेज शब्द राजनीति मे खास मायने रखता है। कभी,कभी इन्सान लालच मे आकर अपना जमीर बेच देता है और बहुत छोटी चीजों मे गिरकर अपना सब कुछ खो देता है। मानव जीवन मे लालच करना बहुत बुरी बला है। लालच देने वाला या मैनेज करने वाला इंसान नेक नही हो सकता है। सत्ता पाने के लिए आज का इंसान किसी भी हद तक जाकर वोटरों को रिझाता है। कुछ वोटर तो बहकावे मे आकर अपना मत बेच देते हैं। लेकिन अधिकांश मतदाता स्वाभिमानी होते है। जो न गिरते हैं न बिकते है उनका अपना दलीय निष्ठा होता है। वह दल के साथ हैं। कुछ चुनाव ऐसे होते है। जहां लोग दलीय निष्ठा को दरकिनार कर अपना नेता बनाते हैं। जो उनके पसंद का होता है। लेकिन चुनाव जीतने के बाद जो नेता बनता है उसकी बात निराली हो जाती है। जो स्वाभिमानी वोटर है जो बिकते नहीं वह तो अपनी बात अपनी समस्या ताव से उठाते है। जो बिका हुआ वोटर हैं वह वोट देने के पहले कुछ भी लिया है तो मजबूती से बात नहीं रख सकता है। धनबल और बाहुबल की ताकत से चुनाव जीतने वाला व्यक्ति तानाशाह हो जाता है। अहंकार से ग्रसित हो जाता है। राजनीति में राजनीतिज्ञ साम दाम दण्ड भेद सब अपनाते हैं। सत्ता सुख जिसे एक बार हासिल हो जाता है। वह बार-बार उसे पाने की चेष्टा रखता है। जिसके पास जो होता है वह देकर जनता में पकड़ बनाता है। दान निःस्वार्थ सेवा भाव से दिया जाय तो ठीक है। अगर उसमे स्वार्थ का भाव है तो ऐसा दान नहीं लेना चाहिए। लोकतंत्र के पवित्र पावन आदर्शवादिता को ठेस पहुंचाया जा रहा है। पहले चाहे जो चुनाव होता था। उसमें लोकतंत्र की एक मर्यादा होती थी। पहले का मतदाता अपने सद्इच्छा से मतदान करता था। आज भी ऐसे मतदाता बहुतों है। जिनमें दलीय निष्ठा है। जिस दल में है उस दल में आस्था रखते हैं और मतदान करते हैं। पंचायत चुनाव आने वाला है। वोट के सौदागर वोटों को अपने पाले में लाने का जतन शुरु कर दिये है। अवकात जिसका जैसा है उसको उस तरीके से मैनेज किया जाता है। बहुत से मतदाता है जो मदिरा पिलाने से खुश होकर वोट देते हैं। कुछ हजार दो हजार में खुश होते है। कुछ चीनी,खोवा,पनीर या राशन सामग्री में खुश हो जाते है। कुछ जनता से चुने मतदाता होते है। जिन्हें जनप्रतिनिधि कहते है। जो लाख, दो लाख, पांच लाख,बीस,पच्चीस लाख में बिक जाते है। जिसकी जनमानस मे चर्चा होती रहती है। पंचायत चुनाव मे व्याप्त अनियमितता को जानते सभी लोग हैं। लेकिन कोई बोलता नही। चीनी लेने वाले,खोवा खाने वाले,वोट देने के नाम पर पैसा लेने वाले,शराब पीकर वोट देने वाले दिल तो सबका जान रहा है। हमने लिया। यहीं अगर किसी से पूछा जाय तो कोई बोलने को तैयार नही। पंचायती राज व्यवस्था में भ्रष्टाचार चरम पर है। आवाज उठाने वालों मे यह डर बना रहता जो पच्चीस ,पच्चास, लाख,करोड़,दो करोड़, पांच करोड़ लगाकर चुनाव जीत रहा है तो अगर उसके खिलाफ आवाज उठाने पर कहीं फंसा न दे। हर कोई सुकून और शांति का जीवन जीना चाहता है। जब अधिकांश सत्ता के कुछ नेता,कुछ अधिकारी,कर्मचारी और कुछ लखनऊ में सत्ता से जुड़े लोग मैनेज होकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हो तो इसमें आम आदमी का बिसात क्या है। जो आवाज उठा दे। सत्य, सत्य होता है। आज नहीं तो कल उजागर होता है। जेडी सिंह संपादक
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